नहीं सुनना था वो सुनते रहे हैं।
हम अपना सर सदा धुनते रहे हैं।।
जो पिस्सू की तरह खूँ चूसते हैं।
उन्हें ही आजतक चुनते रहे हैं।।
मकां बन जाए, रोटी भी मिलेगी।
जन्म से बात यह, सुनते रहे हैं।।
हमारे जीते जी पूरे न होंगे।
हम ऐसे ख़्वाब क्यों बुनते रहे हैं।।
हमें तो हर तरफ दीमक लगी थी।
“विजय” हम इस तरह घुनते रहे हैं।।
विजय “बेशर्म”
प्रतिभा कॉलोनी गाडरवारा मप्र