सच्चा है एक प्यार तुम्हारा।
बाकी तो सब यहाँ झूठ हैं।।
फैला हिय दीपक उजियारा।
बाकी तो सब भृम रूप हैं।।
इत उत ढूंढे कण कण में।
पल्लवित तेरा ही स्वरूप है।।
मूढ़ मन को समझ न आये।
गूढ़ तेरा हर मन रूप हैं।।
नैनो में दर्शन की चाह ।
तू नैनो में ही समाया है।।
खोल के क्यो मन देखे नही।
अलौकिक तेरी ही छाया है।।
जाल ऐसा तृष्णा ने बिछाया ।
बिसराया तू खुद को भूल गया।।
परम अलौकिक उसकी काया।
माया में ही तू झूल गया।।
अंतर को तू देखे नही ।
बस रूप को ही निहार रहा।
वो तो जर्रे जर्रे से बस तेरी।
मूढ़ता हैं ताड़ रहा ।।
चमक चांदनी की प्राणी।
मन मे लालसा हैं पाल रहा।।
जो हैं तेरे पास उसको ही।
तू धिक्कार रहा है।।
अंतर को तो खोल के देखो।
धवल ज्योति आलम्बन है।।
इसमे ही है सार जहाँ का ।
तू व्यर्थ में इत उत भाग रहा।।
आकांक्षा द्विवेदी बिंदकी फतेहपुर