बहुत दूर, वो जगह
जहाँ तुम, बच सको
चले जाना, अकेले ही
ख्वाहिशों को कहीं दूर छोड़ देना
जैसे स्कूलों में प्रवेश लेकर
छोड़ देते हो तुम पढ़ाई को
और ध्यान रहे तुम्हें इस बात का के
सुबह की ओस की बूंदों की तरह
सुकून दे सको किसी की आँख को
ठंडक दे सको किसी के पाँवों को
महसूस करना ताज़ा और साफ हवा को
महक को आने देना अपनी सांस-सांस से
खुशबू को भरपूर फैलने देना सब ओर
चहकने देना अपने भीतर की सारी बेचैनियों को
सुबह-सुबह चहकते हुए पंछियों की तरह
मन को झूमने देना समंदर की लहरों की तरह
और खोज लेना कोई कंकड़
लहरों को मारने के लिए
ताकि घायल कर सको समंदर को
घना ना सही थोड़ा ही सही
और जब घायल कर दो समंदर को
और थकान महसूस करने लगो भीतर तक
ले लेना आश्रय
समंदर के किस छोर पर
और बैठे हुए निहारना समंदर को
©डॉ. मनोज कुमार “मन”