संकटकाल निकल जाए तो।
तुमको जीभर प्यार करूँगा।।
अभी तो छूने में भी डर है, मन में कोरोना का घर है।
बीतेगा तो पुनः मिलेंगे, बुरा समय तो ये पलभर है।।
बाहों का आलिंगन होगा।
तुमसे आँखे चार करूँगा।।
संकटकाल निकल जाए तो।
तुमको जीभर प्यार करूँगा।।
कितने ख़्वाब अधूरे-पूरे, जिनको तुमने रोज़ सजाया।
एक-एक कर कितने सपनों को, कोरोना की भेंट चढ़ाया।।
लॉकडाउन ये खुल जाए तो।
स्वप्न सभी साकार करूँगा।।
संकटकाल निकल जाए तो।
तुमको जीभर प्यार करूँगा।।
मुझे हुआ तो तुम्हें भी होगा, रोग संक्रमित है कोरोना।
मुँह पर मास्क लगाए रखना, बार-बार हाथों को धोना।।
“विजय” सावधानी रखना तुम।
तब ही अंगीकार करूँगा।।
संकटकाल निकल जाए तो।
तुमको जीभर प्यार करूँगा।।
विजय “बेशर्म”
प्रतिभा कॉलोनी गाडरवारा मप्र