शोषित पीड़ित की ढाल था जो,
अब समुदायों की ढाल बना।
अल्पसंख्यक का हार बना,
यह देश के हित जंजाल बना।।
कानून को ढाल बनाकर के,
तुम अपने निज़ हित साध रहे।
स्वारथ में इतने डूब गए,
कर देश को तुम बर्बाद रहे।।
याद करो कुछ पिछली भी,
हम क्या सह कर के आए हैं।
बहुत पुरानी बात नहीं,
क्या खोया है क्या पाएं है।।
रजवाड़ों में बटकर के,
बड़ी गुलामी झेली थी।
इससे मुक्ति पाने को,
दी लाखों की कुर्बानी थी।।
हम हिंदू मुस्लिम भाई भाई,
बड़े प्यार से रहते हैं।
आ करके बात तुम्हारी में,
धोखा हम खा जाते हैं।।
तुम हिंदू हो ना मुस्लिम हो,
केवल स्वार्थ के टट्टू हो।
हया रही ना सरम रही,
खुदगर्जी बड़े निखट्टू हो।।
भारत के अंदर रह करके,
जिंदाबाद पाक को कहते हैं।
जयचंद की औलाद है ये,
जो इनको अपना कहते है।। डॉ चंद्र सेन शर्मा पलवल ( हरियाणा)