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यूं तो जरा भी देर न लगी

भावनाओं को कविता का रूप दिया,

लेकिन आज क्यों शब्द भी थम से गए,

जब से प्रभु श्री राम का नाम लिया।

कितनी पवित्र होगी वो स्याही,

जो लिखेगी मेरे प्रभु श्री राम का नाम,

उस कागज में भी जान आ जाएगी,

जिसमें रघुवर के होंगे गुणगान।

राम नाम जपता ये जग सारा,

पर राम को कितना पहचाना तुमने,

गर जानते हो राम के गुण सभी,

तो रामराज्य क्यों बना नहीं पाए तुमने।

हो अगर भक्त श्री राम के,

तो उनकी पितृभक्ति क्यों भूल गए,

भूल गए माता शबरी को भी,

जिनके जूठे बेर राम ने प्रेम से खाए।

भ्रातृप्रेम का कौन वर्णन करे,

बस आंखें बंद कर वो क्षण याद कर लो,

जब वनवास में राम संग लक्ष्मण चले,

भरत का अयोध्या में एक पल भी न रह पाना।

मित्रता का धर्म भी राम ने निभाया,

राज्याभिषेक में केवट को सखा बनाया,

आदर्श पति के रूप में भी मेरे राम रहे,

माता सीता के बाद किसी को न अपनाया।

करते हो अगर राम की सच्ची भक्ति,

तो उनके आदर्शों को जीवन में अपनाना,

हर रिश्ते का तुम सम्मान करना,

आदर्श पुरुष बन, राम की छवि को सजाना।

अनिता नायक

बरगढ़, ओडिशा

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