रचयिता विशिष्टाचार्य डॉ.सर्वेश कुमार मिश्र
काशीकुंज जमुनीपुर प्रयागराज
वक्त दो वक्त जियो खुद के लिए
उम्र बहुत है गुजार दी दूजों के लिए
दूजे दूजे ही होते हैं
अपने भी सपने से होते हैं
निन्यानवे काम करो उनका
बस कोई एक ना करो काम उनका
फिर तुम सा कोई जाहिल नहीं
फिर तुम सा कोई गंवार मक्कार नहीं
वक्त दो वक्त जियो खुद के लिए
उम्र बहुत है गुजार दी दूजों के लिए।……….(1)
क्यों करते तुम औरों की चिंता?
करोगे कब तुम खुद की चिंता?
किसी का किसी के बिन कोई काम नहीं रुकता
किसी का किसी को हरदम साथ नहीं मिलता
खुद की सेना में खड़े सामंतों के बदलते देर नहीं लगती
आज के समर्थक हैं जो उनके निंदक बनते देर नहीं लगती
वक्त दो वक्त जियो खुद के लिए
उम्र बहुत है गुजार दी दूजों के लिए।……….(2.)
ये वक्त है जनाब यूं ही गुजर जाएगा
आपाधापी में एक दिन कपूर सा उड़ जाएगा
खुद के लिए भी जियो ये फिर लौट वापस न आएगा
काले सारे केशों को यूं ही सफेद कर जाएगा
वक्त दो वक्त जियो खुद के लिए
उम्र बहुत है गुजार दी दूजों के लिए……..(3)
वक्त बहुतों से मिलाएगा
वक्त बहुतों से बिछड़ाएगा
ये जीवन जो पानी का है बुलबुला
कभी खिले हुए से पुष्पों सा
बत कभी जो कली सा है अधखिला
गर ये फूटा फिर ये हाथ न आएगा
गर ये छूटा फिर तू थाह न पाएगा
वक्त दो वक्त जियो खुद के लिए
उम्र बहुत है गुजार दी दूजों के लिए……(4.)
ये लोग हैं साहब
लोगों का काम है कहना
हम सबको एक दिन
दीवारों पे तस्वीर बनके है रहना
सो छोड़ दो सारी आपाधापी
सीखो चैन से जीना तुम
ना करो हाय हाय अब तुम
आत्मकेंद्रित है तुमको होना
दुनियादारी से ऊपर है उठना
जी लो जी लो कुछ खुद के लिए भी जी लो
कर लो कर लो खुद से भी कुछ बातें कर लो
वक्त दो वक्त जियो खुद के लिए
उम्र बहुत है गुजार दी दूजों के लिए ……(5.)