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हौसले

अड़चने हों हजारों राह में तेरे साथी

हौसलों को कभी कम नहीं होने देना।

काटकर गिरि को राहें बनाई हैं तुमने

बाँध सागर को जग को दिखाया कभी।

चाँद मंगल की सरहद भी लांघा तुमने

गहराई पयोधर की भी है नापा सभी।

देव दानव सभी करते तेरी ही बड़ाई

दुष्करों से आँखें नम तू नहीं होने देना।

जोड़ नदियों का पानी दिखाया है तुमने

बंजरों पर भी फसलें उगाकर दिखाया।

जिंदगी हित किये काज लाखों है तुमने

पाठ मानवता का भी सबको सिखाया।

तेरे साहस के आगे तो झुका हर कोई

राह कांटों भरी पग को रुकने न देना।

जीत ही तूने पायी बढ़ा हरदम आगे

गुफा से चांद तक का सफर है किया।

पत्थरों से परमाणु पाया है तुमने ही

जीवन को सत्पथ भी तुमने है दिया।

अड़चनें हों हजारों राह में तेरे साथी

हौसलों को कभी कम नहीं होने देना।

डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”

  दिल्ली

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