समाज सहता प्रहार इतने
बहुत जगह वे गड़े मिलेंगे ।
कहीं खुले तो छिपे कहीं पर
दुखी हृदय भी पड़े मिलेंगे ।।
सदा रहा आन बान जग में
सभी तरफ घोष थी जय जय।
पड़ा उसी पर कभी अँधेरा
किताब में वह जड़े मिलेंगे।।
कभी अँधेरा कभी उजाला
चले सतत यह समय निरन्तर।
समय सदा खेल है खिलाता
फँसे यहाँ पर बड़े मिलेंगे ।।
समान सब भेद पर हजारों
समाज अपना बुने अँधेरा।
विकास पथपर रहे सदा रत
यहाँ अभी भी खड़े मिलेंगे ।।
जगे सभी मन नवल सवेरा
भरे सभी में उजास न्यारा।
बने यहाँ सब मनुज सुपावन
विकार मन के झड़े मिलेंगे।।
सुपथ गहे हो कँटक भले ही
विकास के सब शिखर मिले है।
विनाश पथ है असत्य का मग
वहाँ दनुज ही अड़े मिलेंगे ।।
बहें नदी सम करे जगत हित
सभी गहे आज जीव जीवन।
फलें सदा देख पेड़ पर हित
ऋतु भले हर कड़े मिलेंगे ।।
कभी निराशा नहीं गहन हो
भले मनुज पीर से घिरा हो।
करें सभी काम मन लगन से
यही दनुज से लड़े मिलेंगे ।।
डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली