सतरंगी डोली में बैठी
होली आई रे।
ऋतु बसंत की ओढ़ चुनरिया होली आई रे।
मधुऋतु की आंखों को जब,
मौसम ने किया गुलाबी,
बासंती बयार ने फागुन,
को कर दिया शराबी।
झूम-झूम कर फाग सुनाती होली आई रे।
हर आंगन में रंग बिछे हैं
मन की चूनर गीली,
धरती गगन हुए सतरंगे,
प्रकृति हुई रंगीली।
लगा प्रीति का काजल देखो होली आई रे।
मधुबन,निधिवन,वृंदावन के
संग पूरा बृज आया,
बरसाने के गालों पर
गोकुल ने रंग लगाया।
कान्हा की बंसी को सुनने होली आई रे।
इंद्रधनुष ले पिचकारी
रंगों के तीर चलाए,
चंदा बादल में छुपकर
पूनम को रंग लगाए।
गीत, गजल रंगीले लिखने होली आई रे।
सतरंगी डोली में बैठी
होली आई रे।
गीतकार-अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर , मध्य प्रदेश,