गुरू जी की कृपा से तृप्ति मिले
शरण में आया है ये प्यासा मन
चिर प्रतीक्षा पूर्ण नहीं हो रही
मन चाहता नहीं दूसरा कोई धन
अनवरत साधना का पथ यूँ दिखे
जैसे मृग ढूँढें कस्तूरी वन -वन
आपकी वो कृपा आज मुझको मिले
जिसको खोजे दुनिया का हर जन
सार हीन जीवन भी भव पार है
समर्पण के पुष्प गर कर लो ग्रहण
अंजू मल्होत्रा