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हरा भरा खेत

बारिश हुई झम झमाझम ,

मेढ़क टर्र टर्र टर्रा रहे हैं ।

झींगुर बजा रहे शहनाई ,

केंचुए मिट्टी ये खा रहे हैं ।।

पहले जो पड़े हुए थे श्वेत ,

आज हुए हरे भरे ये खेत ।

कह रहा है हर्षित बादल ,

चल किसान अब तो चेत ।।

पड़े जो अब तक विरान ,

हर्षित हुए खेत खलिहान ।

जोतो बोओ अन्न उगाओ ,

निकल बाहर तू किसान ।।

हरे भरे ये पेड़ पौधे हुए हैं ,

सिंचाई से किया है वंचित ।

जोतों बोओ खाद मिलाओ ,

फसलें कर लो तुम संचित ।।

पूर्णतः मौलिक एवं

अप्रकाशित रचना

अरुण दिव्यांश

डुमरी अड्डा

छपरा ( सारण )

बिहार ।

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