दिनभर की परेशानी
पराये लोग, पराया शहर
अपरिचितों से हर समय घिरा
मैं किसी अबोध बालक-सा
तुम्हें ढूंढने का प्रयत्न
नित्य ही करता हूं।
तुम्हें प्रत्यक्ष देखने की चाह लिए
जीना संभव है किंतु,
यह कठिन कार्य हमसे हो सकेगा कब तक
यह कहना व्यर्थ है।
तुम्हें स्मरण कर आराम की अनुभूति होती है
जाने फिर हर क्षण
खाली-खाली-सा लगता क्यों है।
हिमांशु हेमु
पटना