अरे जीवन पथ के पथिक
विश्राम कर ले तनिक
कहां भागा जा रहा
अंधी दौड़ प्रतियोगिता
तूने ही तो मारी
अपने पांव कुल्हाड़ी
मालूम तो था न
जीवन है चार दिना
ईट पत्थर से बनाए पहाड़
हरी-भरी वसुधा उजाड़
क्यों फैलाया आडंबर
वनों को काटकर
लुप्त चील गिद्धों के परिवार
मृत पशु था उनकाआहार
चूस लिया सारा अमृत
बसुधा की छाती चीरकर
जल थल नभ अतिक्रमण
किया प्रदूषित वातावरण
काल के गाल समा रहा
पूरा विश्व रो रहा
व्यभिचार से न भरा मन
अरे मानव अब तो सुन
दुर्गा बनी कलि कालिका
भू उतरी बन चंडिका
समय रहते हो जा नतमस्तक
करेगी वह महामारी दमन
प्रकृति की कर पूजना
मरेगा तभी कोरोना
होगा तभी संकट हरण
संभव है मानव जीवन।
हेमलता राजेंद्र शर्मा मनस्वनी
साईं खेड़ा नरसिंहपुर
मध्य प्रदेश