ज़िन्दगी एक पहेली सी लगती है,
दुखो की छाव एक सहेली सी लगती है ।
हम तो बैठे थे इक आशा की किरण थामे
पर अब आशा करना एक नादानी सी लगती है ।
ज़ख्म जैसे भी हो हमेशा दर्द ही देते है ,
अब तो ख़ुशी महसूस करना भी , इक बात पुरानी लगती है ।
ज़िन्दगी एक पहेली सी लगती है,
दुखो की छाव एक सहेली सी लगती है ।
उनके लिए हमने ख्वाब तो बहुत सजाये ,
पर अब तो वही खुशियां बेगानी सी लगती है
ज़िन्दगी एक पहेली सी लगती है,
दुखो की छाव एक सहेली सी लगती है ।
लाख इलज़ाम लगाता है ज़माना ,
पर क्या करे अब तोह दिल भी साँसे देने का बनता है बहाना ।
उनकी चाहत में अपना सबकुछ गवा बैठे,
पर वही हम पर इतने इलज़ाम लगा बैठे ।
मुँह मोढ़ा था हर चाहत से फिर भी ,
कितने दाग अपने दामन पर लगा बैठे ।
एक ज़िद सी थी तुम्हे पाने की,
पर तुम तो अपना दामन हमसे छुडा बैठे ।
इसी लिए ज़िन्दगी एक पहेली सी लगती है,
दुखो की छाव एक सहेली सी लगती है ।
कवियित्री – पूनम आहूजा