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लघुकथा – कच्ची मिट्टी : डोली शाह

         आज अन्नू ज्यों ही विवाह कर  ससुराल प्रवेश की पूरे घर में भगदड़  मच गई। सभी  के मुंह से एक ही स्वर  सुनाई दे रहा था, आग लग गई, आग लग गई ।

          कुछ लोग सामानों को बाहर फेंकने लगे ,तो कुछ पानी डालने लगे, किसी ने 101 में फोन किया ,तो कुछ खड़े तमाशा देखते रहे।

               प्रातः काल अड़ोस- पड़ोस के लोगों का देखने का तांता सा  लग गया। सबकी नजरें अन्नु को उपेक्षा की दृष्टि का अनुभूति करा रहे थे। वह भी सब कुछ समझ रही थी ।तब तक आंगन में खड़े कुछ लोग काना-फूसी करते हुए बोले– लड़की के पैर ही अपशगुन है इसीलिए तो विवाह होते  ही इतनी बड़ी घटना।

          इतने मे सासू मां निकल कर बोली– आग लगा तो  था शार्ट सर्किट से ,इसमें बहु के  पैरों का  क्या कसूर!यह सब तो सिर्फ कहने की बात है, जो होना होता है वहीं होता है।           इतना कह  वह वहां से अंदर चली गई।  यह छोटी सी बात अन्नु के लिए अंधेरी रात में एक चिराग साबित हुई। जिससे अनु के दिल में सास- ससुर के प्रति और भी इज्जत बढ़ गई। वह उन्हें हमेशा सिर- आंखों पर रखती ।पूरा घर खुशियों से झूमता। यहां तक कि पड़ोसियों को भी हंसी ठहाके की आवाज मिलती।

               अचानक एक दिन पड़ोस के वर्मा जी घर  आकर  बहू के साथ कलह  का  जिक्र करने लगे ,इतने में अन्नु उनके लिए चाय और नाश्ता लेकर आई।

……. वर्मा जी बोल पड़े–

युग- युग जियो बेटा, मुझे चाय पीने का बहुत  मन भी कर रहा था। मेरे घर पर तो मजाल नहीं एक कप चाय मांग कर पी सकूं।

               इतने में ससुर जी बोले —वर्मा जी बुरा ना माने तो एक बात कहूं –बेटियां जब ससुराल आती है तो वह बिल्कुल कच्ची मिट्टी की तरह होती है ।हम उन्हें जितने  प्यार से सीचेगे  वह भी हमें  उतना ही सम्मान देगी हम पर समर्पित होगी। कुछ पाने के लिए हम  बड़ो भी कुछ देना पड़ता है ।अब यह हम   पर निर्भर करता है कि हम उन्हें  निस्वार्थ भावना से  कितना दे पाते हैं।

……..हां ,आप सही कह रहे हैं। मुझे याद है जब आपकी श्रीमती ने भरी भीड़ में अपनी बहू का साथ दें उसे  एक कलंक से  निकाल प्रकाश का रास्ता दिखाया था।

…….. हां, तभी तो आज बहु भी…..।

                  डोली शाह

                   

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