लो फिर शीत ऋतु आ गई
लो फिर शीत ऋतु आ गई।
छाया सा है कोहरा कोहरा
अंधियारा सा पसरा पसरा
धुंधली सी धुंध छा गई।
लो फिर शीत ऋतु आ गई ।
शाखों पर पंछी सहमें सहमे
कोतूहल से बहमें बहमें
क्यों दिन में रात आ गई।
लो फिर सी ऋतु आ गई है।
सूरज भी है दुबके दुबके
आग ढूंढते चुपके चुपके
अलाव तापने की ऋतु आ गई।
लो फिर शीत ऋतु आ गई ।
पवन देव हैं पागल पागल
शबनम से हैं घायल घायल
पगलाये पवन पर हंसी आ गई।
लो फिर शीत ऋतु आ गई ।
चकवा चकवी खिले-खिले
अभी-अभी थे मिले मिले
बिछड़ने की क्यों ये सांझ आ गई।
लो फिर शीत ऋतु आ गई।
नदियां भी है बहकी बहकी
शीत से हो रही सनकी सनकी
शीत पेय सागर को पिलाने आ गई ।
लो फिर शीत ऋतु आ गई।
ठंड के बेढंग देख-देख के
घर को भागी खेत खेत से
सूने घर में रजाई चोरी हो गई।
लो फिर शीत ऋतु आ गई।
हेमलता राजेंद्र शर्मा मनस्विनी ,
साईंखेड़ा नरसिंहपुर मध्यप्रदेश