Latest Updates

मसखरे

मसखरे हो चले हों लोग जहाँ के

मसखरेपन में ही हो जब सिंहासन

और मजाक में ही उड़ा दी जाती हों

जहाँ लोगों की समस्याएं दोनों तरफ से

नहीं हो किसी को भी जन-पीड़ा से कोई सरोकार

की जाती हों जब मीठी-मीठी बातें दोनों छोर से

और पिटवाई जाती हों उन्हीं से तालियाँ

और नचाया भी जाता हो उन्हीं को ही

जैसे कोई रिंग मास्टर नचाता है

“शेर” को हंटर के जोर पर सर्कस में

बताओ ऐसे नादान लोग कहाँ मिलेंगे

जो नहीं जानते हों अपनी ताकत को

जो नहीं पहचानते हों अपने ही लहू का रंग

जो नहीं जानते हों कब हंसना है, कब रोना है

जो नहीं जानते हों कितना हँसना है, कितना रोना

ऐसे मसखरे कहाँ मिलेंगें….?

© डॉ. मनोज कुमार “मन”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *