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पगड़ी का मान

तुम्हारी बहन के यहां शादी में तुम ही चले जाओ। मुझे नहीं जाना अपनी बेइज्जती कराने के लिए। पूजा अपने पति से झूंझलाकर कह रही थी।

पूजा का पति नीतीश चुपचाप पूजा की बात सुन रहा था।

पूजा की बात भी सही थी। क्योंकि उसकी बहन अपनी अमीरी के दंंभ में उनको बेइज्जत करती ही रहती थी। उसको हाई क्लास सोसाइटी के आगे मिडिल क्लास भैया-भाभी कहां सुहाते है।

नीतीश की बहन की बेटी रिया की डेस्टिनेशन वेडिंग हो रही थी। उसकी बहन ने कोरियर से कार्ड भेज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। लेकिन नीतीश अच्छी तरीके से जानता था कि उसकी बहन अपने मायके वाले रिश्तेदारों की अहमियत नहीं समझती क्योंकि उसका विवाह बहुत बड़े घर में जो हो गया था। नीतीश को याद है कैसे बहन के विवाह में उसके पिताजी और उसने सारा जोड़ा जकोड़ा पैसा निकाल के खूब धूमधाम से विवाह किया था क्योंकि बड़े घर में जो शादी हो रही थी बहन की। लेकिन विवाह पश्चात उसकी बहन शालू का तो मिजाज ही बदल गया।

वैसे तो ज्यादा आना-जाना था ही नहीं। लेकिन हमारे समाज में कुछ त्यौहार ऐसे हैं जो नेह के धागों को बांधे रखते हैं। इन्हीं त्योहार के बहाने से बहुत से रिश्ते नाते निभ जाते हैं।

नीतीश बहुत समझदार व्यक्ति है। वह पूजा को समझ कर कहता है,”पूजा क्यों सारे गढ़े मुर्दे उखाड़ रही हो। भांजी की शादी है भात तो देने जाना ही होगा। रूठना मनाना तो सब चलता ही रहता है। लेकिन जिम्मेदारियां भी तो निभानी पड़ती हैं और जब पिताजी का देहावसान हुआ था तो उनकी तेरहवीं पर पगड़ी पहनाते समय मुझे ही तो सारी जिम्मेदारियां दी गई थी। पगड़ी का तो मान रखना ही पड़ेगा।”

चलो अब गुस्सा छोड़ो। भात देने जाने की तैयारी करो। नीतीश पूजा से बोला।

पूजा भी सारे गिले शिकवे भूल तैयारियों में लग गई। बहन के घर विवाह शादी हो और भाई भात ना लाये, यह भी तो अच्छी बात नहीं होगी।

पूजा नीतीश के गले लग जाती है क्योंकि उसे इतना समझदार पति जो मिला था।

प्राची अग्रवाल

खुर्जा उत्तर प्रदेश

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