रामजी मेरे आ जाइयेगा।
मेरी नजरों में बस जाइयेगा।
अपनी धड़कन को लोरी बनाऊं,
सांसों के झूले पर मैं झुलाऊं।
मेरी पलकों के बिस्तर पर सोने,
मेरी नीदों में आ जाइयेगा।
नाव है जिंदगी ये हमारी,
और पतवार बाहें तुम्हारी,
पार कैसे करूं इस भंवर को,
बन के केवट चले आइयेगा।
शीश चरणों में रक्खा तुम्हारे,
हाथ सिर पर रखो तुम हमारे।
तुम विराजे हो अपने भवन में,
मेरे घर भी चले आइयेगा।
रामजी अब तो आ जाइयेगा।
मेरी नजरों में बस जाइयेगा।
गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर मध्यप्रदेश