उठो द्रोपती वस्त्र सभालो, अब कृष्ण नहीं आएगा.
घर घर में दुशाशन बैठा, वस्त्र कँहा से लाएगा..
दर्योधन के मित्र कर्ण, तुम्हे थनों में मिल जायेंगे.
अपनी बीती कंहोगी ज़ब तुम, तुम पर दाग लगाएंगे..
कोई न होगा तेरा अबला, कोई न धीर बधाएँगा.
उठो द्रोपती वस्त्र सभालो, अब कृष्ण नहीं आएगा —-(1)
मानो कैंस दर्ज होजाये, क़ानून की फाइल मे.
दस बीस वर्ष बीतेगे कोर्ट के इस टॉयल में
परीक्षा तुझ को देनी होंगी कोर्ट के इस प्रागण में
बकील अगिन परीक्षा लेगा, तीखे प्रश्न के इस रण मे.
जयदर्थ सकुनी वैश बदल कर क्षण क्षण तुझे डराएगा.
उठो द्रोपती वस्त्र सभालो, अब कृष्ण नहीं आएगा ——–(2)
तेरे अपने तेरे हीं बन, तुझ को हीं झकझोरेंगे.
भाई बहन पति और देवर, तीखे स्वर में बोलेंगे..
माता पिता स्वाभिमान के खातर, अपना मुहूँ छीपाएंगे.
तेरे चलन वस्त्र हसन बैठन पर, पहरे तक लग जायेंगे..
कुलकलकनी समझ कर तुझ पर, समाज दोष लगाएगा.
उठो द्रोपती वस्त्र सभालो ——(3)
रिस्तेदार और तेरे वह पड़ोसी.
जिस्म के प्यासे बने परदेशी..
चित्र केतु सी तीखी दृष्टि इनकी.
नारी शोभा बनी, खेल है मन की..
तुझ को रोता देख, फुले नहीं समाएंगे.
उठो द्रोपती वस्त्र सभालो ———(4)
नारी तुम हो! दुर्गे अम्बा और तुम्ही कल्याणी हो.
लक्ष्मी उमा सीता हो योग की, कलियुग की अबतारी हो..
जग जननी और जगत बंदनी, और तुम्ही नारायणी हो.
माधव की हो राधे प्यारी, तुम अम्बे मात दुलारी हो..
खड़ग उठालो सिंह बाहनी, असुर नजर नहीं आएगा..
उठो द्रोपती वस्त्र सभालो, —(5)
हें! कल्याणी ध्यान रहे, निर्दोष नहीं मारा जाये
राजनीति के हाथ तुम्हारी सुंदर छवि, न बिकने पाए..
अन्य योगी भात. इस युग में भी पंचम तेरा यहां लेहराये.
क्षमा शीलता तेरे मन की सब के मन, को यू भाएं..
भद्रकाली हुंकार भरो, अरि सिमिट रन में यू जायेगा.
उठो द्रोपती ————-(6)
Pt, श्रीनिवास शर्मा (दैवज्ञ )