कुश्लेन्द्र श्रीवास्तव (स्थाई स्तंभकार)
अब इससे अधिक तो कुछ कहा ही नहीं जा सकता कि ‘‘हे प्रभु ! इन्हें क्षमा करना..ये नहीं जानते कि वो क्या कह रहे हैं । जैसे आम ‘‘बौरा’’ जाता है वैसे ही ‘‘खास’’ भी बौरा ही जाते हैं । कंगना भी खास होते ही बौरा गई लगने लगीं हैं । हम जिस देश में रहते हैं यदि हमें उस देश का इतिहास ही नहीं मालूम हो तो इससे अधिक शर्मिंदगी की बात और क्या होगी….या हो यह भी सकता है कि वे अपने आपको बहुत प्रमुख भक्त प्रमाधित करने के लिए अपने ज्ञान को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत कर रहीं हों । वैसे भी भाजपा में ऐसे बयान आना अब आम बात हो चुकी है । उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री ने अपना ज्ञान प्रदर्षित करते हुए बताया था कि भारत दो सालों तक अमेरिका का गुलाम रहा । एक और भाजपा नेत्री ने ज्ञान दिया था कि भारत को 99 सालों की लीज मिली हुई है और अब कंगना रनावत ने सभी देशवासियों की आंखें खोल दें ऐसा बयान दे दिया कि 197 में भारत को जो आजादी मिली दरअसल वो भीख में मिली थी वास्तविक आजादी तो 2014 में ही मिली है याने हमारी आजादी के अभी मात्र सात साल ही बीते हैं । पर प्रधानमंत्री जी ने तो 12 मार्च 2021 को गुजरात के साबरमती आश्रम से आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में ‘‘अमृत महोत्सव’’ का शुभारंभ किया था, कंगना को इसके बारे में जानकारी नहीं होगी वे ठहरी अत्यधिक व्यस्ततम नेत्री…वे भला ऐसी छोटी-छोटी बातों को ध्यान कैसे रख पाती होगीं । जिसके पास ज्यादा बड़ा ज्ञान होता है वो छोटे ज्ञान के पीछे नहीं भागता । उन्हें पद्मश्री उनके ज्ञान के लिए थोड़ी न मिली है वो तो उनके अभिनय के लिए मिली है….तो उन्होने अभिनय के साथ ही यह ज्ञान प्रस्तुत कर दिया और मजे की बात यह कि उस टी.व्ही. शो में जो एंकर थीं उन्होने भी इस ज्ञान को बगैर किसी विरोध के मान लिया । उस शो को जो श्रोता देख रहे थे उन्होने तालियां बजाकर इस नए ज्ञान को समर्थन दिया । अब सभी कह रहे हैं कि इनका सम्मान वापिस लो और इन पर राष्ट्रद्रोह को मामला कायम करो । पद्मश्री सम्मान तो देश का बहुत बड़ा सम्मान है, यह सम्मान देश के गौरव का प्रतीक है तो जाहिर है कि कंगना जैसी अल्पज्ञानी के पास यह सम्मान रहे यह उचित तो नहीं होगा । हमने तो आजादी के संघर्ष की बहुत सारी कहानियां सुनी हैं, हमने सह भी सुना है कि आजादी के लिए अनेकों लोगों ने यातनायें सहन कीं, अनेक सेनानियों को मौत के घाट उतार दिया गया, जलियावाला कांड भी हुआ और भगतसिंह जैसे युवा क्रांतिकारी को फांसी पर चढ़ा दिया गया । अमृत महोत्सव चल रहा है तो सरकारी स्तर पर ऐसे आयोजन हो रहे हैं जो भारत की आजादी के दीवानों को फिर से याद करा रहे हैं । कंगना ने एक ही झटके में यह सारा प्रपंच ही खत्म कर दिया । स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अपमान भारत में तो कभी नहीं हुआ पर अब हो रहा है तो लोगों में आक्रोश तो पैदा होगा ही । महात्मा गांधी जी को भी कठधरे में खड़ा किया जाता रहा है । प्रज्ञा भारती सांसद हैं पर वे महात्मा गांधीजी के बारे में ऊअपटांग बयान देती रहीं हें । एक समूह है जो महात्मा गांधी के हत्यारे को हीरो मानता है । आजादी के अमृत महोत्सव की अवधि में आजादी के रणबांकुरों को कठघरे में खड़ा करने का दौर भी दिखाई देने लगा है । इस पर लगाम तो लगाई ही जानी चाहिए । हम यदि अपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के संघर्ष को नमन नहीं कर सकते तो उनको अपमानित भी नहीं कर सकते । इतिहास का मूल्यांकन कभी नहीं किया जा सकता । कौन सा निर्णय किस परिस्थिति में लिया गया इसके बारे में आज बैठकर चिन्तन करना और बयान देना ‘‘बौरा’’ जाने जैसा ही है । इस पर रोक लगाई जानी आवश्यक है ताकि हमारी नई पीढ़ी के सामने भारत की स्वतंत्रता का इतिहास विकृत रूप् में प्रस्तुत न हो सके । एक ओर नेता हें सलमान खुर्शीद उन्होने भी एक किताब सामने रख दी । उसमें और जो कुछ होगा वो ठीक है पर उन्होने जिस तरह से हिन्दुत्व को लेकर अपने विचार रखे वह भी चिन्ताजनक है । चिन्ताजनक इसलिए है कि वे सरकार में विदेश मंत्री भी रह चुके हैं । वे 1993 से 1997 तक विदेश मंत्री थे । विदेश मंत्री के रूप् में उन्होने कई देशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है । एक मंत्री के विचार यदि इस तरह से होगें तो वह चिन्ता का विषय तो होगा ही । सलमान खुर्शीद की किताब ‘‘सनराइज ओवर अयोध्याःनेश्नहुड इन अवर टाइम्स’’ में हिन्दुत्व की तुलना आतंकी संगठन आईएसआईएस और बोकोहरम से की है । भारत को अंतराष्ट्रीय स्तर पर न्दिुत्व के रूप् में ही पहचाना जाता है । यहां यह भी स्पष्ट है कि हिन्दुत्व का अर्थ सहज भाषा में सनातन संस्कृति से ही जोड़कर देखा जाता है । तो क्या हमारी संस्कृति को ही कठघरे में खड़ा कर दिया गया है । एक नेता के रूप् में उनके ऐसे विचारों ने कांग्रेस की कार्यशैली पर भी प्रश्नवाचक चिन्ह लगा दिया है । हमारे देश की राजनीति किस दिशा में जा रही है अब सारे देशवासियों को इस पर चिन्तन करना चाहिए । वोटो की राजनीति के लिए देश की विचारधारा को दांव पर नही लगाया जा सकता । कंगना का बयान हो या सलमान खुर्शीद की किताब के अंश हों खतरनाक दोनों ही हैं । कश्मीर घाटी में आतंकी अब हिन्दुत्व विचारधारा को मानने वाले लोगों की हत्यायें कर रहे हैं तो उसकी निंदा क्यों नहीं । प्रश्न अनेक हें पर राजनीति के लिए इन प्रश्नों के कोई मायने नहीं हें । राजनीति अब आम मतदाताओं को लुभाकर वोट लेने की मंशा तक सिमट कर रह चुकी है । उत्तर प्रदेश में चुनाव होना है तो उत्तरपद्रेश में ऐसे बयानों की बाढ़ सी आ गई है । हताशा या बेहद लरलसा इसकी जिम्मेदार है । कभी माना जाता था कि राजनीति जनता की सेवा के लिए होती है पर सेवा शब्द अब नई परिभाषा में बदल चुका है । अनावश्यक से प्रश्नों को सामने रखकर जनता को उनमें उलझा देना अब राजनीति का अहम बिन्दु बन गया है । नबाब मलिक जिस तरह से समीर बानखेड़े पर आरोप लगाते-लगाते राजनीति करने लगे वह भी चिन्तनीय है । समीर बानखेड़े की कार्यशैली यदि संदिग्ध है तो उसे सामने लाया जाना चाहिए क्योंकि ये वे ऐजेन्सियां है जिन पर आम व्यक्ति भरोसा करता है । यदि आमजनता के इस भरोसे का गलत इस्तेमाल हो रहा है तो वह निंदनीय है । नबाब मलिक ने बहुत सारे तर्कों के साथ बहुत सारी बातें सामने रखी भीं हो सकता है कि वे सभी बातें सच हों पर फिर वे एकाएक राजनीति में कूद गए जो चिन्ता का विषय है । समीर बानखेड़े यदि वाकई इमानदार अधिकारी हैं तो ऐसे आरोप उन्हें और जागरूक करेगें पर यदि नबाब मलिक के आरोप सच हैं तो एन्हें कठारे दंड भोगले के जिउ तैयार रहना चाहिए । अब अपनी ताकत के बल पर किसी निर्दोंष को ब्लेकमेल नहीं कर सकते । बहरहाल अभी तो इसका सच सामने आने में समय लगेगा पर सच सामने आना ही चाहिए । ऐसा ही सच उत्तरप्रदेश की जेल में बंद एक युवक की कथित आत्महत्या के प्रकरण में भी सामने आना आवश्यक है । उस युवक को तो पूछताछ के लिए बुलाया गया था बाद में उसका मृत शरीर ही परिवार वालों को मिला । उसकी मौत संदग्धि है । पुलिस आत्महत्या की जिस थ्यौरी को सामने रख रही है वह इस संदिग्धता को और बढ़ा रही है । उत्तरप्रदेश में ऐसी घटनायें बढ़ रही हैं जो चिन्तनीय हैं । आगरा में भी ऐसी ही एउक मौत हुई थी । चुनाव के चलते अभी ऐसी घटनायें चर्चाओं में जरूर आ रहीं हैं पर कुछ दिनों की चर्चा और कुछ राजनीतिक दलों के प्रलाप के बाद ये घटनायें फाइलों में कैद होकर रह जाती हैं । इनका समाधान खोजा जाना चाहिए ।