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छाया है पिता

बरगद की घनी छाया है पिता छाँव में उसके भूलता हर दर्द। पिता करता नहीं दिखावा कोई आँसू छिपाता अन्तर में अपने। तोड़ता पत्थर दोपहर में भी वो चाहता पूरे हों अपनों के सपने। बरगद की घनी छाया है पिता छाँव में उसके भूलता हर दर्द। भगवान का परम आशीर्वाद है पिता जीवन की इक…

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ख़बर से बेख़बर

ग़मों का मारा बेचारा मासूम-सा ये जो दिल है। अरमानों की इसने फिर से सजाई महफ़िल है।। कुहासा-सा  जिंदगी  में आजकल  बहुत है। दूर बादलों में गा रहा कोई प्यारी-सी ग़ज़ल है।। डर  था  जब  समंदर  की लहरों से  इतना। फिर क्यूँ, बना लिया साहिल सहारे घर है।। पाँवों के  छाले  भी  अब  तो पूछते…

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राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन

(01 अगस्त, 1882 से 01 जुलाई, 1962) प्रारंभिक जीवन :- पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 01 अगस्त, 1882 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा वहीं के सिटी एंग्लो वर्नाक्यूलर स्कूल में हुई। सन् 1894 में उन्होंने इसी स्कूल से मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण…

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दोहा : सास ससुर ससुराल है,

सास ससुर ससुराल है,साला सलहज दूर। आवत जावत मुह पिटे,नैन देखि मजबूर।। ननद मिताई बांध के, चलते रिस्ते नात। टूटी डोरी सांस की, झूठी सारी बात।। पाहुन घड़ी बिताय के, निकले अपने धाम। ठहरे जो पहरे पहर,बिगड़े सारे काम।। भोगे अपने भोग सब,अपने करमे हार। जीती -जाती जिंदगी,कर ली कैसे?क्षार।। साढू के घर जाइये,हाथ रहे…

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ग़ज़ल,

शराफत हम से कहती है,शराफत से जिया जाए, कोई हद भी तो होती है,कहाँ तक चुप रहा जाए। ग़ज़ल से गुफ़्तगू हमने इशारों में बहुत कर ली, मगर अब दिल ये कहता है कि कुछ खुल कर कहा जाये। अभी ज़िंदा हैं हम साँसें भी अपनी चल रहीं हैं न, तो फिर क्यों ना बुरे…

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” कैरियर परामर्श एक आवश्यकता।”

भारत देश में जनसंख्या के बाद दूसरी बड़ी समस्या है, बेरोजगारी। रोज़गार कम हैं और नए रोजगार उत्पन्न करने की गति भी धीमी है। लेकिन खेद इस बात का है कि उपलब्ध रोजगार भी योग्य लोगों को प्राप्त नहीं हो पा रहे हैं। इसका कारण है जानकारी का अभाव। वर्तमान शिक्षा छात्रों को अक्षर ज्ञान…

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गुरू कृपा

गुरू जी की कृपा से तृप्ति मिले शरण में आया है ये प्यासा मन चिर प्रतीक्षा पूर्ण नहीं हो रही मन चाहता नहीं दूसरा कोई धन अनवरत साधना का पथ यूँ दिखे जैसे मृग ढूँढें कस्तूरी वन -वन आपकी वो कृपा आज मुझको मिले जिसको खोजे दुनिया का हर जन सार हीन जीवन भी भव…

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