गर्मी के दोहे
सूरज आतिश बन गया,तपे नगर,हर गाँव। जीव सभी अकुला उठे,ढूँढ रह सब छाँव ।। सूरज का आक्रोश है,बिलख रहे तालाब । कुंओं,नदी ने भी ‘शरद’,खो दी अपनी आब ।। कर्फू सड़कों पर लगा,आतंकित हर एक । सूरज के तो आजकल,नहीं इरादे नेक ।। कूलर,पंखे हँस रहे,ए.सी.का है मान । ठंडे ने इस पल “शरद’,पाई नूतन…