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किसी अच्छे संवाद लेखक से लिखवा लेते संवाद

कुशलेन्द्र श्रीवास्तव आदि पुरूष बहुत मंहगी फिल्म बनाई गई है । वैसे भी अब फिल्मों को अनावश्यक मंहगा करना फैशन जैसा बन गया है, ताकि कहने में अच्छा लगा कि हम कोई ऐसे वैसे फिल्म मेकर नहीं हैं कि सस्ती सी फिल्म बना दें । आदि पुरूष भी महंगी बना दी गई । जब इतनी…

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बिंब का प्रतिबिंब” काव्य-संग्रह पुरस्कृत

डब्ल्यूसीएल की मौलिक हिंदी पुस्तक लेखन योजना के तहत चयनित अनुराधा प्रकाशन से प्रकाशित डॉ. मनोज कुमार “मन” के काव्य संग्रह, “बिंब का प्रतिबिंब” को भारत सरकार के सार्वजनिक उपक्रम कोल इंडिया लिमिटेड की अनुषंगी कंपनी वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड, नागपुर की मौलिक पुस्तक लेखन की श्रेणी में चयनित किया गया है। “बिंब का प्रतिबिंब” के…

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तलाक है या है ये बिदाई

हरफ – हरफ हिसाब लगाकर सब ले गई थी तुम अपना| ये मेरा हुआ, ये तुम्हारा बनता है इतना। फिर भी छोड़ गई देखो सामान कितना| इतना कि हर पल, हर कदम अपने ही घर में ठोकर खाकर गिरता हूँ में| यूंकि तुम याद न आओ इसलिए आँखें मूँदें फिरता हूँ मैं। सिंगार के निशां…

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शब्द आज मौन है

हाहाकार करती धरा, चीत्कार करने लगा है गगन कैसे करूँ नमन उनको, जो कर गए न्योछवर तन अद्भुद सा संयोग है, क्या विचित्र सा योग है खुद को पीड़ित कहते है, पर औरो को पीड़ा देते है पीड़ित हो शोषित हो तो मेहनत को हथियार बना लो किसने तुमको रोका है, अपना जीवन आप बना…

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