एक मदारी का बंदर था चिम्पू,
रोज उछल कूद बहुत मचाता।
अपनी शैतानी पर खूब इठलाता,
एक रोज चिम्पू हो गया आजाद।
मदारी को छोड़ जंगल जा पहुचा,
मोबाइल मदारी का है उसके पास।
सब जंगल के जानवरों को दिखाता,
अपना रोब उन पर खूब जमाता।
सबका दिल मोबाइल पर आया,
जंगल का राजा आया उसके पास।
मोबाइल पाने की है उसे आश,
चिम्पू बंदर है बहुत ही चालाक।
पेड पर चढ़ा राजा की जानके आश,
शेर राजा का तब सर चकराया।
पेड पर चढ़ने को किया उसने प्रयास,
थककर फिर लौट गया अपने वास।
अपना मोबाइल बचाकर चिम्पू मुस्काया,
लौट के बुधु फिर शहर को वापस आया।
नीरज त्यागी