बाढ़ पीड़ितों के घर में विपदा बरस रही है.
बाढ़ क्षेत्र में सर्वत्र ही तबाही-ही-तबाही है.
न पीने को पानी है;न खाने को ही भोजन,
भुक्तभोगी कहते हैं, दीखता नहीं प्रशासन.
बाढ़ बहाकर ले गया सारी संचित निधियां,
दह गया तैयार फसल, लुट गई हैं खुशियां.
दूध के लिए मासूम सब जार-बेजार रोते हैं,
दवा बिना रोगी को यमदूत खड़ा दिखते हैं.
सड़ी लाशें तैर रही हैं बाढ़ के बंधे पानी में,
नरक का दृश्य देख लें जलमग्न गलियों में.
बाढ़ पीड़ितों से पूछ लें राहत की राहत को,
हाहाकार मचा है वहां,हाल सुनाएं किसको?
सुविधाभोगी हाल पूछते हैं बन शुभचिंतक,
आश्वासन की थाली फेंक जाते हैंअपने घर.
बाढ़ की त्रासदी झेलते हैं लोग यहां वर्षों से,
प्रशासन को सब पता है,सदा सुस्त वे रहते.
बाढ़ नियंत्रित रहे यहां; हम ऐसा प्रबंध करें,
हजारों करोड़ की क्षति से बिहार को बचायें.
विकास बाधित होता है बाढ़ की तबाही से,
गुलशन बर्बाद हो जाता बाढ़ की त्रासदी से.