झूठ का पौधा उगाया जा रहा है
सत्य से उसको सजाया जा रहा है
बह रही थी जो हवा उपवन डुलाती
आंधियाँ उसको बताया जा रहा है
झूठ का पौधा उगाया जा रहा है
सत्य से उसको सजाया जा रहा है….
कह रहे वो हो रहा जो भोर वह है
दिख रहा जो मानते न शोर यह है
सो रहे थे जो भुलाकर दर्द अपना
नींद से उनको जगाया जा रहा है….
झूठ का पौधा उगाया जा रहा है
सत्य से उसको सजाया जा रहा है ….
हो रहा इतिहास का कैसा वरण है
भव्यता का हो रहा कैसा क्षरण है
चूर हो मद में गिराने के लिए बस
खुद किला उन्नत ढ़हाया जा रहा है …
झूठ का पौधा उगाया जा रहा है
सत्य से उसको सजाया जा रहा है…
अश्रु जो जिनके नयन से बह रहे हैं
भाग्य का बनना इसे वह कह रहे हैं
गलतियां अपनी छिपाने के लिए ही
उँगलियाँ उन पर उठाया जा रहा है…..
झूठ का पौधा उगाया जा रहा है
सत्य से उसको सजाया जा रहा है….
छा रही यह बेवसी की जो लहर है
बोलता कोई नहीं कितना कहर है
देख करके धुंध धुआँ का ही ‘राही’
बादलों का रुख बताया जा रहा है…
झूठ का पौधा उगाया जा रहा है
सत्य से उसको सजाया जा रहा है….
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’