मन को फिर बच्चा बनाये
कागज़ की नाव बनाये,
दूर तलक मनकी पींगें जाए
सपनों के आओ महल बनाये।।
बुन ले सपनों की दुनिया,
मन उलझाके मन सुलझाये।
खोलकर मन की अलमारी को,
भावों के कपड़ों को जांचे।
बदल-बदल कर उन कपडों को,
खुद में खुद को पहचाने।।
खाली समय में क्या करें,
मन की गांठे खोले।
चिंतन करे आत्मीयता का,
प्रेम-पुष्प खिलाएं।
बन्द करें कमरे का पट,
और जोर-जोर चिल्लाएं।
कभी गगनचुंबी हँसी तो,
कभी आर्त्तक्रन्दन मचाएं।।
उठा के भावों की बढ़नी,
कलुषित कचरों को झाड़े।
उठा के भूली डायरी,
फिर से विचारों को सहेजें।
अखबार की वो भूली कतरन,
फिर पढ़कर गुनगुनाएं।
खाली समय में क्या करें,
पुरानी कॉपी के पन्नों को,
पढ़े और मुस्कुराएं।
नम होती पलकों को,
पोछे और सुखाएं।।
-शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच,उ०प्र० )