मेरी ड्यूटी राजकीय अस्पताल में थी | यहां दिनोदिन कोरोना के नये मरीज आ रहे थे |बहुत सारे यहाँ से ठीक होकर भी चले गये | एक शाम को ड्यूटी समाप्त करके घर जाने ही वाला था कि एक अर्जेंट केस के लिए मुझे बुलाया गया |
उसकी सांसे फूल रही थी | रात आँखों में निकली | दूसरे दिन दोपहर को जाकर तबियत में सुधार हुआ | मैं घर गया | आज मेरी नाईट ड्यूटी थी | शाम को वापस अस्पताल पहुंचकर मैंने उसकी तबियत जानी , अब कुछ सुधार हो रहा था | आधी रात का समय था ,
वो बोली – ” मुझे एक रजिस्टर और पेन लाकर दो ” |
मैंने चौंकते हुए कहा -” इस वक्त ? , अब इस समय नहीं मिल सकता , सुबह प्रबंध करेंगे | “
कुछ देर तक खामोशी छायी रही |
फिर मैंने पूछा ” क्या करती हो तुम ?”
एक लंबी सांस लेने के बाद उत्तर दिया -” इंग्लैंड में एक न्यूज पेपर में एडिटर हूं | भला हो सरकार का वतन के दर्शन तो कराए वरना पराये मुल्क की मिट्टी मेॉ दफ़न होना पड़ता |”
मैं बोला – ” ऐसा क्यों कह रही हो ?”
दूसरी तरफ निगाहें घुमाकर जवाब दिया -” इतना अपनापन वहां कहाँ ! “
कुछ दिन यूं ही बातों बातों में बीत गये | न जाने क्यूं उससे हमदर्दी हो चली थी | धीरे धीरे उसकी तबियत में सुधार हो रहा था | मैं खुश था | एक शाम को अचानक उसने मुझे बुलाया | रजिस्टर थमाते हुए बोली – ” इसमें जो कुछ लिखा है , सब तुम्हारे लिए है “
मैंने कहा -” ऐसा क्या लिखा है इसमें ?”
वो बोली -” कुछ ऐसा जो दिल ने कहा है ” |
मैंने उत्सुकतावश रजिस्टर खोलने की कोशिश की लेकिन उसने ऐसा करने से मना कर दिया ,
बोली – ” फुर्सत में पढ़ना !”
मैने रजिस्टर उसके सिरहाने रख दिया और अन्य मरीजों को देखने चला गया | धीरे धीरे मेरी उससे और नजदीकियां बढने लगी | अब मैं बिना बुलाये ही उसके वार्ड में चला जाता था | मेरे दिल ने कहा “यही है तेरा हमसफर ” |
मगर कहीं ये प्यार एकतरफा तो नहीं है ? यह सोचकर मैंने उसके सामने अपने दिल की बात नहीं रखी | एक दिन अचानक से मुझे बुलाया गया | उसकी तबियत बिगड़ती जा रही थी | उसे वेंटिलेटर पर रखा गया | घंटे भर तक वो तड़पती रही | उसने रजिस्टर को हाथों में कसकर पकड़ रखा था | जब उसे लगा कि अब वो जी नहीं सकती तो हाथ के इशारे से मुझे नजदीक बुलाया और रजिस्टर मुझे थमा दिया | उखड़ती सांसों से बोली – ” कहानी में एक किरदार अधूरा रह गया है | मुझे माफ करना “
मैं कुछ कहता इससे पहले ही सांसे थम गयी | भारी कदमों से अस्पताल के बाहर आया | दीवार का सहारा लेकर खड़ा हो गया |
रजिस्टर खोलकर पढ़ना शुरू किया | लिखा था-
” क्या मैं तुम्हारे लायक हूं ?
मैंने चुन लिया है हमसफर तुझे
तेरा जवाब ही जिंदगी है मेरी “|
मेरी आंखे भर आई , गला रुंध गया | इससे आगे मेैं कभी पढ़ नहीं पाया | कहानी पूरी थी किरदार अधूरा रह गया , जो कभी पूरा नहीं हो पायेगा |
कविता-
मैंने देखे बदलते लोग
वगता राम चौधरी
मैंने देखे बदलते लोग
पीढ़ीयों में पलते लोग
बाहर रोते अंदर हंसते
बैठे हुए भी चलते लोग
मैंने देखे है बदलते लोग
.
भोलेपन का नाटक करते
होशियारी का ढोल पीटते
बाहर गोरे अंदर काले
बर्फ पर पिघलते लोग
मैंने देखे है बदलते लोग
.
साथ चलने का वादा करके
साथी को गिराते लोग
मिलती मंजिल में दोस्त बनकर
पांव खींच फिसलाते लोग
मैंने देखे है बदलते लोग
.
धन दौलते में प्यारे बनाकर
शरीफ देख ठगते लोग
गम का रस्ता देखकर
पतली गली से निकलते लोग
मैंने देखे है बदलते लोग
.
कौन पूछता है ‘चौधरी’
मायूस चेहरा देखकर
खुश रहना चाहते है
गमगीन दुनिया के लोग
मैंने देखे है बदलते लोग
नाम -वगता राम चौधरी
पता-अरणियाली , तहसिल धोरीमन्ना , जिला बाड़मेर( राजस्थान)