प्रवीण बहल (विकलांग रत्न)
किसने देखा है आंधियों में चिराग जलना
अंधेरों में चराग जलना तो सब ने देखा
कौन जला सका आंधियों में चिराग
मैं वह इंसान हूं– जो आंधियों में चिराग जलाता है
इन चिरागों में मैंने अपने दिल का खून डाला है
कई बार यह चिराग टिमटिमाते रहे–
पर कभी बुझ न सके–
मैं दिल से आंधियों में चिराग जलाता है
कौन कहता है आंधियों में चिराग जलते नहीं
तुमने दिल चुराए हैं– दिल दिया नहीं
मैंने अपने दिल जलाए हैं–
किसी का दिल चुराया नहीं
इसीलिए मैं आंधियों में चिराग जलाता रहा हूं