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लाॅकडाउन

                 इलाहाबाद यानी प्रयागराज अपने आप में एक सम्पूर्ण और गौरवशाली नगरी रही है। महानगरों की तुलना में बिल्कुल शांत शहर

मगर शिक्षा के क्षेत्र में उनसे कहीं आगे।यह शहर प्रतिभाओं की नगरी भी कहा जाता है।

किसी समय यहां बाहरी लोग भी यदि पानी मांग लें तो उन्हें पानी के साथ साथ कुछ मीठा

अवश्य दिया जाता था। धीरे-धीरे महानगरों के

स्वार्थपरता व आत्ममुग्धता की आदत इसे भी लगने लगी।

               रागिनी एक कर्मठ पत्रकार हैं, वह इलाहाबाद के नैनी में अपने पिता द्वारा दिये गये मकान में अपने परिवार के साथ रहती हैं। यह मकान करीब 1983 का बना हुआ एक पुराना मकान है। यहां की हालत यह है की धीरे-धीरे सड़कें तो ऊपर होती गयीं और कमरे नीचे होने लगे हैं, करीब चार चार फुट नीचे। अब बहुत ही अजीबोगरीब स्थिति में है ये कमरे । कुछ लोगों ने पूरा का पूरा मकान तुड़वाकर नया बनवा लिया । कुछ ही लोगों के पास इस तरह का घर

अभी भी है। नीचे के कमरे लोग किराए पर उठा

देते हैं पर बहुत जरूरतमंद लोग ही इन कमरों को किराए पर लेते हैं।

            करीब चार महीने पहले ई रिक्शा पर कुछ सामान लादकर एक आदमी किराए का   एक कमरा खोज रहा था। उसके साथ उसकी पत्नी और दो बच्चे  भी थे जो बार बार रिक्शे से बाहर झांक रहे थे। शायद उनमें उस घर को देखने की उत्सुकता हो रही होगी जहां उनको रहना था। उन चारों के कपड़ों से ही उनके स्तर का अनुमान लगाया जा सकता था। किसी ने उन्हें बता दिया की उस गली के चौथे मकान में कमरा खाली है।बस वह आदमी पूछ्ते पूछते रागिनी के मकान के सामने जा खड़ा हुआ। रागिनी उस समय गाय को रोटी खिलाने के लिए बाहर निकली हुई थी। उसे देखकर वह आदमी उनकी ओर आगे बढ़ा,

“मैडम जी नमस्ते।”

नमस्ते नमस्ते ,कहो क्या बात है? रागिनी ने जवाब दिया।

      “मैडम मेरा नाम प्रेम प्रकाश है । हम लोग

बाहर से आये हैं । मैं किराए के एक कमरे के लिए बहुत परेशान हूं ,सुना है आपके पास एक कमरा खाली है।”

     “हां है तो ,पर पहले तुम उसे देख लो।” वह कमरा लोग कम ही पसन्द करते थे इसलिए रागिनी ने पहले कमरा देख लेने की पेशकश की। प्रेमप्रकाश ने अपनी पत्नी को इशारा करके बुलाया। ई रिक्शे में से उसकी पत्नी उतर कर नीचे आ गई। रागिनी ने दोनों को ले जाकर उनको नीचे का कमरा दिखाया।

   प्रेमप्रकाश ने तुरंत ही हां कर दिया ।उन्हें तो रहने के लिए एक ठिकाना चाहिए था।

“मैडम इसका किराया भी बता दीजिए।”

“भाई इसका किराया दो हजार है।”रागिनी ने कहा।

  “नहीं मैडम जी मैं अभी नया नया आया हूं।मैं अभी इस कमरे का डेढ़ हजार किराया ही दे पाऊंगा ।”प्रेमप्रकाश ने कहा।

     रागिनी ने भी हां कर दिया। न के बजाय डेढ़ हजार किराया ही मिल जाए यही काफी था।वह

कमरा बहुत दिनों से खाली पड़ा था।

          प्रेम प्रकाश ने तुरंत डेढ़ हजार निकाल कर रागिनी के हाथ में रख दिया । फिर ई रिक्शे से सारा सामान निकाल कर दोनों ने कमरे में रखा। प्रेम प्रकाश की पत्नी कमरे की सफाई में लग गयी । रागिनी ने आदतन उन लोगों के लिए पूड़ी सब्जी बनाकर ले आयी। दोनों बच्चे बहुत भूखे थे वे तुरंत खाने पर टूट पड़े।

                     बातों ही बातों में पता चला कि प्रेमप्रकाश लखनऊ के रहने वाला है। इसको लखनऊ से एक ठेकेदार लेकर आया है। वह उसे ट्रांसफार्मर का काम कराने के लिए लाया था। ठेकेदार ने दस दिन के लिए उसको दो हजार रुपए एडवांस भी दिया था।

        प्रेम प्रकाश की पत्नी मधू एक लम्बे कद काठी और तीखे नैन-नक्श वाली गोरी चिट्टी महिला थी । रागिनी को पहली मुलाकात में ही मधू बहुत ही मिलनसार नजर आयी। उनके दोनों बच्चे भी बहुत चंचल और सुन्दर थे।उनका नाम था कान्हा और विनय । वे अभी बहुत छोटे-छोटे थे बड़ा चार साल का और छोटा तीन साल का। दस दिन बाद होली का त्यौहार पड़ा । होली में वे सभी खूब खुश नजर आ रहे थे परन्तु यह पहली होली थी जब लोग डर डर कर होली खेल रहे थे कारण था कोरोना का डर । होली के बाद कुल चार दिन ही काम चला था कि तभी कोरोना महामारी फैलने के कारण लाकडाउन हो गया। अब प्रेम प्रकाश बुरी तरह से फंस गया। उनके पास में जो थोड़े से पैसे थे वह भी खत्म  होने लगा था। मधू भी

पहली बार ऐसी स्थिति का सामना कर रही थी।

बहुत ही विषम‌ स्थिति उनके सामने मुंह बाये खड़ी थी।

          पराया शहर, पराये लोग और सभी लोग अपरिचित । प्रेम प्रकाश जब ठेकेदार को फोन लगाता तो वह बिना काम के पैसा देने से साफ मना कर देता । ठेकेदार इसी बात को लेकर

दुखी हो रहा था की उसने जो दो हजार रुपए एडवांस दिया था वह  उसके दो हजार रुपए पानी में गए। धीरे धीरे उसने फोन उठाना भी बन्द कर दिया। लाकडाउन, हाथ में पैसा नहीं,घर भी नहीं जा सकते और यहां भी बाहर नहीं निकल सकते ,अब वह करे तो क्या करे।

           प्रेमप्रकाश सामने के दुकानदार के पास गया,”भैया घर के लिए खाने-पीने का कुछ सामान चाहिए,जैसे ही लाकडाउन खुलेगा मेरा काम चालू होगा मैं तुम्हारे पैसे दे दूंगा।”

  “अरे नहीं भैया , मुझे तो तुम माफ़ ही  करना। मैं कभी किराएदारों को उधार नहीं देता हूं।” दुकानदार ने टके सा जवाब दे दिया।

“मेरा विश्वास करो भैया, तुम्हारा पैसा कहीं नहीं जायेगा।” प्रेमप्रकाश लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोला।

  “नहीं जी कल तुम चले जाओगे तो मैं तुमको कहां कहां तलाशूंगा।”दुकानवाले ने झिड़कते हुए कहा।

     प्रेमप्रकाश मुंह लटकाए वापस घर में चला आया। मधू की आंखों से आंसू बह निकले। न तो वे लोग वापस घर जा सकते थे और न ही उनको कोई सरकारी सहायता ही प्राप्त हो पा रही थी। इस काम में ठेकेदार अगर चाहता तो उनकी बहुत मदद कर सकता था पर कौन किसी के दुख को समझता है। वह तो दो हजार एडवांस देकर ही पछता रहा था।

                 रागिनी अपने कमरे की खिड़की में बैठी  हुई गली में दुकानदार से हो रहे उनके  बातचीत को ध्यान से सुन रही थी। थोड़ी देर बाद वह नीचे आयी तो देखा बच्चे भूख से ‌रो रहे थे और मधू बच्चों को शांत करा रही थी।  प्रेम प्रकाश अपने ठेकेदार से गिड़गिड़ा रहा था मगर ठेकेदार बिना काम के एक धेला भी देने को तैयार नहीं था।

         रागिनी चुपचाप ऊपर कमरे में गई और पांच किलो दाल और चावल लाकर मधू को दे दिया

,”लो पहले तो बनाओ खाओ, अपने बच्चों को खिलाओ फिर कुछ और करो।”

      “अरे भाभीजी बहुत बहुत आभार आपका,

जल्दी ही मेरा पैसा आने वाला है।फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा।”मधू ने कहा।

    मधू भी गांव से थी और जाने कितने लोगों

की उसने मदद भी की थी परन्तु आज उसके

सामने यह दिन आयेगा उसने सोचा भी नहीं था। अनाज थामते हुए उसका हाथ कांप रहा

था। मधू ने अनाज ले लिया और बच्चों के लिए

कुछ बनाने के लिए गैस जलाने लगी।

     वे दोनों रागिनी के इस सहृदयता पर चकित थे। एक तरफ वह दुकान वाला जो उधार तक देने के लिए नहीं तैयार हुआ। और दूसरी तरफ रागिनी जो इतना सारा अनाज लाकर दे गयीं।

                 कोरोना काल जीवन के लिए एक महासंग्राम भी कहा जा सकता है।  न जाने कितने लोग इस संग्राम की बलि चढ़ गए। जाने

कितने लोग भूख से तड़प तड़प कर मर गये।

कुछ तो अपने गांव जाने की जिद में सड़कों पर चलते चलते अपने प्राण गंवा बैठे। रोग के कारण जो मर गए वो तो अलग ही।

          रागिनी एक धार्मिक स्वभाव की महिला थीं वह रोज दो मुट्ठी चावल चिड़ियों के लिए छत पर डाला करती थी। उनके यहां खेतीबारी होती थी तो चावल, दाल ,गेहूं तथा अन्य अनाज गांव से ही आ जाता था। चावल दाल साफ करने के बाद जो छोटे-छोटे टुकड़े निकलते उनको एक बड़े बर्तन में करके सीढ़ियों के नीचे की जगह में रखवा देती थी। फिर कभी उनकी बहू और कभी वे स्वयं ही, उसी में से रोज दो मुट्ठी चावल निकाल कर चिड़ियों के लिए छत पर डाल देती थी। एक दिन मधू ने जब रागिनी से सीढ़ी के नीचे रखे हुए उन बर्तनों जिसे वह गैलन कहती थी उसके बारे में पूछा तब रागिनी ने उसे सब कुछ बता दिया था।

              इधर मधू के यहां रागिनी द्वारा दिया गया अनाज़ भी खत्म हो गया। बच्चे फिर रोने लगे।भूख की मजबूरी और वह भी अपने बच्चों की भूख इंसान को गलत कदम उठाने के लिए भी मजबूर कर सकती हैं।मधू ने भी आज वही किया। उसके दिमाग में सीढ़ी के नीचे रखे हुए चावल दाल की किनकी के डिब्बे घूम गये। उसने भगवान से माफ़ी मांगी और उन्हीं डिब्बों  में से थोड़ा सा दाल और चावल की किनकी निकाल ले आयी और उसी को पकाकर बच्चों के तथा अपने पेटपूजा की व्यवस्था की। किनकी चावल के बहुत छोटे टुकड़े होते हैं जिस किनकी को या तो पशु-पक्षियों को खिला दिया जाता है या उसे पिसवाकर आटा बनाकर कुछ खाने की चीजें जैसे फरा ,इडली डोसा आदि बनाने में प्रयोग किया जाता है। उसी

किनकी को चावल के रूप में बनाकर खाना कठिन है और स्वाद भी नहीं आयेगा। परन्तु भूख तो बस भूख है वह स्वाद नहीं देखा करती है।

             दूसरे दिन रागिनी की बहू चिड़ियों को डालने के लिए किनकी निकालने चली तो उसे वह गैलन हल्का लगा। उसने तुरंत अपनी सास को यह जानकारी दी, “मम्मी जी किनकी वाला गैलन आज खाली-सा लग रहा है। अभी तो उसे भरा था।”यह सुनते ही रागिनी ने तुरंत बात को

संभाला,

  “अरे बेटा उसमें से निकाल कर मैंने थोड़ा सा किनकी गाय को डाल दिया था।”

                    रागिनी जानती थी कि उस गैलन में से किनकी मधू ले जाती है । रागिनी दो चार दिन के बाद सबकी नजर बचाकर गैलन भर देती थी । यही नहीं अब चिड़ियों को दाना डालने का काम उसने अपने हाथ में ले लिया। अब वह उस किनकी में आधे से ज्यादा चावल मिला देती थी। दाल के टुकड़े में दाल मिलाकर रख देती थी। मधू  जब दाल चावल के किनकी निकाल कर लातीं तो पति से कहती,” इन लोगों को किनकी निकालना भी नहीं आता इसमें तो आधे से अधिक साबूत अनाज होता है।”

         उसको यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि रोज वह गैलन से दाल और चावल की किनकी निकालती है पर गैलन खाली क्यों नहीं हो रहा है। वह इसे ईश्वरीय लीला मानकर चल रही थी।

     एक दिन रागिनी के बेटे को सीढ़ी के नीचे कुछ आवाज सुनाई दी। वह सीढ़ियों की ओर बढ़ा मगर मां रागिनी सामने आ गयी, “नहीं बेटा कोई जरूरत नहीं है वहां जाने की। मुझे सब पता है। सीढ़ियों के नीचे रखे गैलन की किनकी से ही चार लोगों को जिंदगी मिल रही है बेटा । और वह भी पूरे स्वाभिमान के साथ।”

      बेटे को सब समझ में आ गया। आज उसे अपनी मां पर गर्व महसूस हो रहा था।

       तभी लाकडाउन खुलने का एलान हुआ।रागिनी ने उन लोगों के घर जाने की व्यवस्था  की । एक हजार रुपए किराया तथा रास्ते में खाने के लिए पूड़ी सब्जी दिया और उनको हंसी खुशी उनके घर भेज दिया। अपने घर पहुंचकर दोनों ने रागिनी को बहुत बहुत धन्यवाद दिया।वे लोग सच्चे मन से रागिनी को दुआ दे रहे थे। मधू भगवान को धन्यवाद दे रही थी कि उन्होंने किनकी का गैलन खाली नहीं होने दिया।

डॉ सरला सिंह “स्निग्धा”

दिल्ली

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