हमारी आज़ादी की लड़ाई में 9 अगस्त 1942 का दिन बेहद महत्वपूर्ण था जब गाँधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा की थी. यह वह समय था जब दूसरा विश्व युद्ध अपनी चरम सीमा पर था. अमेरिका को हार का ख़तरा नज़र आ रहा था, इसलिए राष्ट्रपति रूज़वेल्ट ने कर्नल जॉनसन को भारत भेजा था की वह अंग्रेज हुकूमत से बात करें और भारत की जनता और सेना को इस बात का वादा करे कि युद्ध के बाद उन्हे आज़ादी मिल जाएगी और अभी भारतीय कॉंग्रेस की तरफ से युद्ध में सहयोग दिया जाएगा. गाँधीजी ने इस बात को खारिज किया था. भारत में कई बड़े कॉंग्रेसी नेताओं की धरपकड़ शुरू हुई तथा उन्हे जेलों में डाल दिया गया. इसके चलते पूना, बंबई और अहमदाबाद में स्थिति खराब हो गयी और दंगे भड़क उठे. दो महीने में लगभग 10,000 भारतीयों को मौत के घाट उतारा गया था. लोगों में भारत छोड़ो आंदोलन की आग अपनी पहचान बना रही थी.
15 अगस्त 1947 को हमारा अपना तिरंगा, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जावाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर फहराया था. भारत की जनता ने अपनी आज़ादी की एक बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी. लेकिन इस देश में इस महत्वपूर्ण दिन से पहले भी बहुत कुछ हुआ था जिसके बारे में बहुत कम जानकारी आम लोगों को है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने लंदन में 19 जुलाई 1947 को भारत की स्वतंत्रता बिल को मंज़ूरी दी थी. उनके द्वारा दिए गये वक्तव्य के अनुसार ‘.. अब कुछ दिनों में भारत की जनता के हाथों में उनके नये देश की बागडोर दे दी जाएगी. मुझे उम्मीद है की दोनो देशों के लोग एक दूसरे के साथ भाईचारे के एक नये अध्याय को बनाएँगे और एक नये विश्व की इबारत लिखेंगे..”. अख़बारों में बड़ी सुर्ख़ियों में गाँधीजी का संदेश था “.. जमींदारी की प्रथा का अब अंत होने जा रहा है, अंग्रेज़ो के जाने के बाद हमारे अपने ज़मींदारों को भी अब जनता बर्दाश्त नही करेगी. जनता को इसमे पहल नही करनी होगी, नयी सरकार इस काम को पूरा करेगी..” आज़ादी से पहले का यह सप्ताह बेहद खुशी और उमंग को अपने साथ लाया था. सभी तबके के लोग खुश थे. अख़बारों ने अपने स्वतंत्रता दिवस के अंक की तैयारी शुरू कर दी थी. कई जाने माने लेखकों ने आज़ादी पर अपनी कलम स्याह की थी. जनता के पास उस समय देश की जानकारी हाँसिल करने के लिए अख़बार और कुछ हद तक रेडियो ही एक मात्र साधन था.
मानो ना मानो !
देश में कई रोचक बातें इस पहले स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में हुई थी. उत्तर प्रदेश की इंटरमीज़ीयट परीक्षा में तीन नंबर ग्रेस मार्क्स दिए गये और लगभग 1500 छात्र इस वजह से पास हुए थे. पाकिस्तान में आज़ादी के जश्न मनाने के लिए हिंदुओं से 10,000 रुपये और मुस्लिम बाशिंदों से 15,000 रुपये इकट्ठा किए गये थे. भारत में बंबई और अहमदाबाद में दो लाख मिल मजदूरों को आज़ादी का बोनस मिलने का इंतजार था ! भारत की स्वतंत्रता में अहम भूमिका रखने वाले आज़ाद हिंद फौज के सेनानियों के लिए देश के किसी भी हिस्से में बिना टिकट सफ़र करने का प्रावधान का एलान किया गया था. बर्मा और अमेरिका ने एक लाख 48 हज़ार टन खाद्य सामग्री भेजी थी. आज़ादी से पहले देश में मौजूद कई रियासतों ने अपने आप को भारत में शामिल करने की बात मानी. सभी को 14 – 15 अगस्त की रात 12 बजे का इंतजार था जिसे ज़ीरो अवर कहा गया था. पाकिस्तान में भी मोहमद अली जिन्ना ने भी अपने देश के बाशिंदों को इस बात की सूचना दी कि इस देश में जनता को बराबरी का हिस्सा दिया जाएगा. हिंदू मुस्लिम एकता को तवज्जो देने की पुरजोर कोशिश की जाएगी, इसलिए देश के लोगों को किसी किस्म का ख़तरा महसूस ना हो.
जन जागृति और जन चेतना को देखते हुए कोलकाता और नई दिल्ली में कई देशभक्तिपूर्ण नाटकों का मंचन किया गया था. जेलों से बंदियों को माफी देकर रिहा किया गया था. शहरों और कस्बों में देश की आज़ादी की तैयारी में जश्न का माहौल बन रहा था. इस आज़ादी के माहौल से गाँधीजी ने अपने आप को दूर रखा था, वे कलकता में थे और दिन भर उपवास रख हिंदू मुसलमानों के बीच बढ़ रहे तनाव से चिंतित रहे. भारत के अंतिम ब्रिटिश वाइसरॉय ने 15 अगस्त 1947 की तारीख भारत की आज़ादी के लिए क्यों चुनी यह सवाल भी कई बार पूछा गया था. इसके जवाब में उन्होने खुलासा किया था कि यह तारीख दूसरे विश्व युद्ध में जापान की बिना शर्त घुटने टेकने की बरसी थी. माउंटबेटन उस समय दक्षिण पूर्वी एशिया कमांड के सैनिकों के सुप्रीम कमांडर थे. यह एक इत्तेफ़ाक है की दक्षिण कोरिया भी इसी दिन आज़ाद हुआ था.
बँटवारा कब और कैसे ?
सभी को आज़ादी के बाद होने वाले बँटवारे के बारे में पूर्वाग्रह था, लेकिन यह कब होगा इसकी सही जानकारी नही थी. इस बँटवारे में जिस राज्य को सबसे ज़्यादा अहमियत थी वह था पंजाब. एक तरह से पंजाब आग के शोले की तरह भड़कने के लिए तैयार बैठा हुआ था. उस समय के पंजाब के गवर्नर ईव्हान जेन्किन्स ने माउंटबेटन को कई बार लिखा था कि जनता को आज़ादी से पहले ही इस बात की सूचना दे दी जाए की बँटवारा कब और कैसे होगा. इस तरह लोगों को सीमा के पार जाना आसान होगा और खुद अपना फ़ैसला आज़ादी के पहले कर सकेंगे. इसी कार्य में सर सिरिल रेडक्लिफ भी सीमा के नक्शे बनाने में लगे हुए थे. उन्होने अपने काम को समय से पहले बड़ी तेज़ी से पूरा किया और उनके नक्शे अगस्त की 9 तारीख को तैयार कर लिए थे. माउंटबेटन ने 15 अगस्त की खुशियों पर पानी ना फेरने के उद्देश्य से इस बँटवारें की घोषणा को लंबित कर दिया था. उनके अपने तर्क थे. लेकिन पंजाब के लोगों में डर बढ़ चला था क्योंकि उन्हे यह नही पता था कि वे भारत में रहेंगे या पाकिस्तान में चले जाएँगे. आख़िर 17 अगस्त को पंजाब के बँटवारे की बात आम जनता को बताई गयी.
शिमला में चल रही बँटवारें की बातचीत को लॉर्ड वेवेल ने क्यों ख़त्म की थी का जवाब किसी भी इतिहासकार ने नही दिया है. इस बातचीत में बँटवारा ना किए जाने को तवज्जो दी गयी थी. लगभग सभी की यही राय थी की देश का बँटवारा ना हो. अँग्रेज़ों ने इस तारीख को आज़ादी के बाद इसलिए रखा था क्योंकि अंग्रेज नही चाहते थे कि बँटवारें की आँधी में जो मारकाट हो उसका सेहरा ब्रिटिश ताज के सर पर बँधे. शायद ब्रिटिश राज के तहत यदि बँटवारा होता तो खून ख़राबा नही होता, क्योंकि ब्रिटिश राज उस समय निष्पक्ष दायरे में काम करते. लेकिन होनी को कोई नही टाल सका और जिसका सबको ख़तरा महसूस हो रहा था वह पंजाब के टुकड़ों के साथ मौत का मंज़र दुनिया के सामने नज़र आया. ब्रिटिश राज के सैनिक जब बंबई से अपने वतन लौटने के लिए 17 अगस्त को जहाज़ों पर चढ़े थे तब इंग्लैंड जिंदाबाद माउंटबेटन जिंदाबाद के नारे लगाए गये थे और भारतीयों ने उन्हे भावभीनी बिदाई दी थी. कौन कहेगा की इसी सेना ने 200 साल तक राज किया था !
अब हमारे आज़ाद देश को 73 साल हो गये है. देश पर बाहरी ताकतें अपनी नज़र रखे हुए है, देश में घुसकर आतंकवादी भी हमारे लिए चिंता का सबब है. जय हिंद ..
( लेखक सेवा निवृत्त कर्नल है )