ज़हन में कई हैं ख्याल, सवाल किससे करें?
सियासत का बुरा हाल, सवाल किससे करें?
करते हैं नंगा नाच, संसद में अब नेता,
अपनी ही ठोंके ताल, सवाल किससे करें?
सब चाहते बिरयानी, चाँदी के थाल में,
ना खाएं चावल दाल, सवाल किससे करें?
लूट, हत्या व डकैती, राहजनी बेख़ौफ़,
सड़क पर ताण्डव कमाल, सवाल किससे करें?
कुर्सी का तो हालत हुआ, कि वैश्या से बदतर,
चमचों का फैला जाल, सवाल किससे करें?
नहीं धर्म ईमान और, न सन्त का सम्मान,
जनता को करें हलाल, सवाल किससे करें?
कुछ भी कोई बोलता, न किसी पर अंकुश,
सियासत के हैं दलाल, सवाल किससे करें?
सांडों की लड़ाई में, ज्यों झूंडों का नाश,
ये ही जनता का हाल, सवाल किससे करें?
किसी की सुनते नहीं, बात अपनी करते,
ऐसी लोगों की चाल, सवाल किससे करें?
दंगा, फसाद जो करें, नफरती चालों से,
चलते कर ऊंचा भाल, सवाल किस्से करें ।
सर्वाधिकार,
पवन शर्मा परमार्थी
कवि-लेखक
9911466020
दिल्ली, भारत ।