एक ख्याति लब्ध शल्य चिकित्सक का कवितायें लिखना या दूसरे शब्दों में कहें तो सिर्फ कवितायें नहीं लिखना बल्कि छन्द पर आधारित कवितायें लिखने के लिए काव्य लेखन कुंजी के रुप में एक पुस्तक लिख देने को सही मायने में मणि कांचन संयोग कहा जा सकता है,जो विरले ही देखने को मिलता है।डा संजीव कुमार चौधरी एक शल्य चिकित्सक होने के साथ साथ एक प्रोफेसर भी हैं जिनका पहला शौक है कवितायें लिखना।डा संजीव की यह तीसरी पुस्तक है जो काव्य सृजन में सबसे कठिन समझे जाने वाले विषय “छन्द”पर पूरी जानकारी देने के साथ साथ छन्द में काव्य लेखन की बारीकियों को उदाहरण के साथ समझाती भी है।ऐसे में यह कहना ज्यादा उचित होगा कि पहली बार किसी ने एक ऐसी सहायक पुस्तक तैयार की है जिसके सहयोग से नये सृजक थोड़ा प्रयास करके छन्द में अपनी कवितायें लिखना (जो आमतौर पर काफी जटिल कार्य माना जाता है)प्रारम्भ कर सकते हैं।यह पुस्तक कैसी होगी इसकी बानगी इसी बात से मिल जाती है कि प्राक्कथन भी छन्द और मात्रा को ध्यान में रख कर लिखा गया है
छन्द लेखन प्रक्रिया पर भरा ज्ञान का भंडार
आदिकाल से नवयुग तक अनेकों हैं विचार
पुख्ता जो करना हो कविता का शिलान्यास
मददगार साबित होगी यह पुस्तक छन्द विन्यास
आज कवितायें खूब लिखी जा रही हैं और यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आज की हिन्दी कविता भारत की और विश्व की बहुत सी कविता से बेहतर है।पर जब मुझ जैसा कोई नवोदित कवि अपनी बात छन्द-बद्ध तरीके से कहना चाह्ता है तो उसके सामने पहली समस्या यह होती है कि वह छन्द जैसे जटिल विषय का कितना अध्ययन करे कि वह अपनी अभिव्यक्ति छन्द-बद्ध रुप में प्रस्तुत कर सके,तो इसमें कोई दो राय नहीं कि ऐसी समस्या का समाधान यह पुस्तक अवश्य कर सकती है।डा संजीव इस जटिलता का हल अपनी पुस्तक के पहले खण्ड मे बड़ी ही सहजता से दे देते हैं
भावना का कर श्रृंगार
झंकृत करे मन के तार
शब्द विहंसे मंद मंद
कविता है वही तो छन्द
और फिर डा सन्जीव आगे लिखते हैं
प्रस्तुत है छन्द की सरंचना की यह अद्भूत कथा
नवोदित रचनाकारों की दूर करेगी थोड़ी व्यथा
स्वर-अक्षर कहलाए वर्ण तो सिर्फ स्वर मात्रा
गति यति तुक मात्रा गणना से बंधती छन्द यात्रा
अक्षर के उच्चारण काल को कवि कह्ते हैं स्वर
हलन्त लगे अगर नहीं गिने जाते वर्ण वो अक्षर
इस तरह एक कविता की पूरे छन्द विन्यास के सिद्धांत और उसके प्रयोग को समझाने की कोशिश की गई है।
कह्ते हैं कि जीवन को जिस आँख से कविता देखती है वह कवि की अपनी होती है इसलिये उसमें दृश्य का अनूठापन और स्वप्न की अंतरंगता एक साथ पाई जाती है।और इन दोनों के साथ मिलने के बाद जो अभिव्यक्ति के स्वर बनते या निकलते हैं वे बेशक विशेष होते हैं।ऐसे में यह कहा जा सकता है कि यहाँ कवि जिस नजरिये से छन्द को देखता है वह बिलकुल स्पष्ट है और अनोखा भी है :
छन्द की जटिलता को सरल बनाते हुए नवोदित रचनाकारों को छन्द बद्ध रचनायें लिखने के लिए प्रोत्साहित करना।
यहाँ एक सवाल यह भी उठता है कि छन्द में क्यों लिखा जाये?जाहिर तौर पर यह विमर्श का विषय हो सकता है या इस पर लम्बी चौड़ी बहस की जा सकती है। बेशक अगर सामान्य अर्थों में समझा जाये तो छन्द रचना की गेयता को बढ़ा कर उसे मधुर और खूबसूरत बना देता है जिससे पाठक को एक सुखद अनुभूति होती है ,पर डा संजीव न तो इस बहस में पड़ते हैं और न ही छन्द के पैरोकार के रुप में नज़र आते हैं बल्कि उनकी मंशा यही है कि नवोदित रचनाकार इसे इतना जटिल नहीं समझें जितना इसे मान लिया जाता है।
इस पुस्तक में चार खण्ड हैं पहले में छन्द परिचय दूसरे में मात्रिक छन्द तीसरे में वर्णिक छन्द और चौथे में छन्द मुक्त/नव सृजन के बारे में चर्चा की गई है।मात्रिक छन्द में 60 वर्णिक में 61 और नव सृजन के अन्तर्गत 17 अलग अलग प्रकार की विधा पर चर्चा भी उसी विधा में लिखी गई रचना के माध्यम से की गई है।इस विशेषता को इन उदाहरणों के माध्यम से देखा जा सकता है।पर यहाँ मेरे विशेषता का अर्थ विशेषता है अद्वितीयता नहीं,अद्वितीय होने पर दूसरों से अपनी निजता का साझा नहीं रह जाता अथार्त संवाद और सम्प्रेषण पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाता है।
मात्रिक छन्द
मात्रा भार का ध्यान रख रचे जाते जो छन्द
प्रचलित हैं साहित्य में अनेकों मात्रिक छन्द
हर चरण में जो हो मात्रा की गणना समान
ऐसी रचनाओं को सम मात्रिक लेते हैं मान
सम मात्रिक के भी कई प्रकार हैं मसलन अहीर, तोमर, लीला ,मधु मालती, मनोरम ,चौपाई सगुण ,सिन्धु राधिका ,रोला, गीता, विष्णु पद, छन्न पकैया, तांटक, विधाता और कुण्डलिया आदि।
वर्णिक छन्द
वर्णों की गणना आधारित होता छन्द वर्णिक
मात्रा गिनने का इसमें न रहे प्रतिबंध तनिक
लघु गुरु का क्रम भी जो होते चरणों में तय
गणों के नियत क्रम सजा करें चरण निश्चय
सात चरणों में वर्णों की संख्या रखे समान
सम वर्णिक छन्द को दें वर्णिक वृत का मान
वर्णिक छन्द के भी कई प्रकार हैं मसलन मल्लिका, स्वागता, भुजंगी, शालिनी, इन्दिरा, तोटक, चामर, सवैया मदिरा, किरीट, घनाक्षरी, मनहरण घनाक्षरी आदि।
मुक्तछन्द /नव सृजन
आधुनिक युग की मुक्तछन्द है देन
लय प्रवाह बना येन केन प्रकारेण
मात्रा वर्ण गणना का ना होवे मान
स्वछन्द गति भाव वश यति विधान
इसके भी कई प्रकार हैं मसलन
तुकान्त/अतुकांत मुक्त छन्द, पंचाट छन्द , हाइकु , तांका , सेदोका , वर्ण पिरामिड ,डमरू काव्य ,माहिया, गीत विधा, चतुष्पदी मुक्तक और क्षणिकाएं आदि।
इसके अतिरिक्त डा संजीव ने अपनी एक नई काव्य विधा “पंचाट छन्द विधा” भी इजाद की है।
पंचाट नाम की मेरी नव मौलिक विधा
न कठिन परम्परागत नियम की दुविधा
रचे समूह रख सम तुकान्त पँक्तियाँ पाँच
समूहों के अलग तुकान्त ना लायें आँच
समूहों की संख्या रख लें चाहे जितनी
न्यूनतम तीन तो मगर होगी ही रखनी
डा संजीव चौधरी की” छन्द विन्यास” को पढ़ कर ऐसा नहीं लगता कि वे पेशे से एक शल्य चिकित्सक हैं बल्कि ऐसा लगता है कि वे छन्द विधा के चिकित्सक हैं।इसमें कोई दो राय नहीं कि इनकी यह कृति पठनीय और संग्रहनीय है जिसका स्वागत किया जाना चाहिये।
राजेश कुमार सिन्हा
मुम्बई