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कैसे

कैसे गीत गजल कविता के छंदों का विस्तार करूं ।

भय से विस्फारित जब आंखें ,कैसे उनसे प्यार करूं ।।

घायल मन , निर्बल है तन, चेतना शून्य कुंठित विचार ।

प्रलयंकारी बाढ़ -वेदना का कैसे प्रतिकार करूं ।। 1

जिसको खुद उपचार चाहिए वह प्रियजन की चिता जलाता।

अंधकार है गहन सूझता नहीं किरण आशा की पाता ।।

सांसों का संघर्ष सतत है कब जाने किसकी बारी है ।

सूख गई संवेदना सभी ये कैसी विकट महामारी है ।।

राज्य प्रशासन सभी पंगु हैं इन सबको धिक्कार करूं ।

कैसे गीत गजल कविता के छंदों का विस्तार करूं ।।2

आग लगी जब सभी ओर से तब जाकर वे कुंआ खोदते ।

राजनीति के दुष्ट भेड़िए मुर्दों के भी मांस नोचते ।।

वोट बैंक सत्ता के लोलुप बस अपनी उपलब्धि गिनाते ।

क्षोभ निराशा लाचारी से युक्त चेहरे इन्हे न भाते ।।

भर नयनों में कुछ पल देखूं प्रिय कैसे सत्कार करूं ।

कैसे गीत गजल कविता के छंदों का विस्तार करूं ।।3

पशु पक्षी भी सहमे सहमे और वनस्पति भी उदास है ।

प्रियतम गए विदेश किसी के मिलने की धुंधली सी आश है ।।

अब तो पूरा बरस हो गया रुके हुए बिटिया की शादी ।

रोजगार के साधन सब बीमार ,हो गई पूंजी आधी ।।

अंधे लंगड़े आश्वासन के बल कैसे जीवन पार करूं ।

कैसे गीत गजल कविता के छंदों का विस्तार करूं ।।4

जी एम अग्रवाल

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