समर्पण का अर्थ है “समस्त अर्पण” उस सर्वशक्तिमान के समक्ष जिसने हमें बनाया है। किसी निर्धारित उद्देश्य से हर प्राणी को पृथ्वी पर भेजा है। जब आप समर्पण भाव से जीवन को बिताते हैं तो सभी मुसीबतों से अपना नाता तोड लेते हैं। जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार कर लेते हैं। ईश्वर के अस्तित्व को महत्व देने लगते हैं। जिसने इस संसार को बनाया है, प्रकृति की संरचना की है।
कुछ वर्ष पहले तक खुद को समस्याओं से घिरा पाकर हिम्मत टूट जाती थी। मन परेशान रहता था और दिमाग काम करना बंद कर देता था। समस्याएं अपनों को खोने से जुड़ी थी। लोगों से मिलने वाले धोखे से जुड़ी थी। अपनी पहचान बनाने से जुड़ी थी। हर वक्त सोच सोच कर, सारे प्रयत्न करने पर भी समस्या तो समाप्त नहीं होती बल्कि शरीर बीमार हो जाता था। मुसीबत का एक उसूल यह भी है कि कभी भी अकेले नहीं आती है। अपने पूरे परिवार के साथ आती है और जाने को भी तैयार नहीं होती है। एक समस्या का निपटारा करें तो दूसरी तैयार खड़ी होती है। इस स्थिति से उबरने में एक साधारण से विचार ने मेरी मदद की। इस समय याद नहीं आ रहा है कि किसने मुझे यह मंत्र दिया था जिसके जपने से सभी रोग स्वाहा हो जाते हैं। जिसने भी यह मंत्र दिया है उसका आभार व्यक्त करती हूं। जब हम समस्याओं में घिरे होते हैं तो अपना मनोबल खो देते हैं। यही वह समय होता है जब इंसान को किसी अपने की आवश्यकता होती है। यदि कोई अपना स्थिति संभाल लेता है तो बड़ी से बड़ी समस्या भी सुलझ जाती है लेकिन सभी लोग खुशकिस्मत नहीं होते कि बुरे वक्त में कोई साथ देने वाला मिल जाए। इसलिए यह उपाय हमें परिस्थियों की मार सहने की शक्ति देता है। जब भी परेशानी से घिर जाएं सबसे पहले आंखें बंद करके, हाथ जोड़कर उस परमात्मा से कहें,” हे भगवान, सब तेरे ऊपर छोड़ दिया है। मुझे इस मुसीबत से बचने का रास्ता दिखा दे। मैं तेरी शरण में हूं।” यह अंधभक्ति नहीं है बस उस शक्ति के अस्तित्व को स्वीकार करना है जो इस संसार को चला रही है। समस्या भले ही छू मंतर न हो लेकिन उससे निपटने का रास्ता ज़रूर नज़र आ जाता है। मुसीबत का परिणाम कुछ भी हो उसे स्वीकार कर लेने की हिम्मत हमारे भीतर आ जाती है। एक आंतरिक शक्ति हमें निर्देशित करती है कि समस्या से कैसे निपटा जा सकता है ? हम अपनी मानसिक शक्ति को पहचान लेते हैं और मुसीबत से भागने के बजाय उसका डटकर मुकाबला करने लगते हैं। वर्तमान परिस्थितियों में इसकी बड़ी आवश्यकता है और हो सकता है आगे भी बनी रहे। अपनी आत्मिक शक्तियों पर विजय प्राप्त करके हम सही और ठोस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं। परिस्थितियों को अपने अनुरूप ढालने के बजाय उन्हें उनके वास्तविक रूप में स्वीकार कर लेते हैं। सफलता के उच्च शिखर से अगर कभी नीचे गिर पड़े तो संभलना कैसे है बस यही सीखना ज़रूरी है। आत्मविश्वास के साथ वापसी कैसे करनी है बस इसी प्रश्न का उत्तर इस विचार को अपनाने से मिल सकता है। यदि प्रतिदिन रात को सोने से पहले अपने सभी अच्छे बुरे कार्य ईश्वर को समर्पित करने की आदत बन जाए तो मुसीबत आने पर मानसिक संतुलन बना रहता है।
अर्चना त्यागी