एक छोटे से गांव में मोहन अपनी मां के साथ रहता था। एक छोटा सा खेत था उनके पास। उसमें फसल उगाकर मां मोहन की परवरिश कर रही थी। मोहन एक होनहार छात्र था। कक्षा में हमेशा प्रथम आता।मेहनत से पढ़ाई करता। जो समय बचता उसमें मां की काम में सहायता कर देता। पिता का साया बचपन में ही उसके सिर से उठ गया था। मोहन की मां का यही सपना था कि मोहन पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बने और अपने गांव के उत्थान के लिए कार्य करे। हर बार की तरह इस बार भी विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाना था। आयोजन में पूरे गांव को निमंत्रण भेजा जाता था। छात्र अपनी सामर्थ्य के अनुसार वस्तुओं का योगदान देते थे।मोहन बहुत दुखी था। उसके पास विद्यालय में देने के लिए कुछ भी नहीं था। जैसे तैसे उनकी गुजर बसर होती थी। वह भी अपनी मां के साथ विद्यालय के आयोजन में शामिल होना चाहता था। जैसे जैसे स्वतंत्रता दिवस पास अा रहा था उसकी चिंता बढ़ती जा रही थी
खाना पीना भी ठीक से नहीं खाता। उसकी मां ने उसे दुःखी देखकर, कारण पूछा। मोहन ने उदास स्वर में उत्तर दिया ” मां, विद्यालय में होने वाले उत्सव में देने के लिए हम सामग्री कहां से लाएंगे ?” मां ने उसे समझाते हुए कहा ” बेटा, गोपाल तुम्हारी मदद करेंगे।” मोहन की उत्सुकता बढ़ गई। ” कहां रहते हैं गोपाल ? कैसे आएंगे हमारे पास ?” मां ने फिर उसे प्यार से समझाया ” बेटा, गोपाल को जो भी सच्चे मन से याद करता है, उसी की सहायता करते हैं। तुम भी सच्चे दिल से उनको याद करो, तुम्हारे पास भी अवश्य आएंगे।” मोहन को मां की बात पर विश्वास हो गया। उसने गोपाल को याद किया और सो गया। रात में उसने एक स्वप्न देखा। वह गांव से जंगल की ओर जाने वाले मार्ग पर चला जा रहा है। गोपाल को पुकारते हुए।
जंगल में घूमता रहा। गोपाल तुम कहां हो? आवाज लगाते हुए। दिन भर यहां वहां भटकता रहा। परन्तु। गोपाल नहीं मिला। रोते रोते वह फिर भी पुकारता रहा ” गोपाल तुम कहां हो ? मेरे सामने क्यूं नहीं आते हो ? मां कहती है तुम सबकी मदद करते हो, मेरी भी करो। सामने आओ गोपाल। सामने आओ गोपाल। कहते कहते वह नीचे गिर गया। बहुत थक गया था इसलिए सो गया।
आंख खुली तो वह बिस्तर से नीचे गिर पड़ा था। बहुत उदास था मोहन। आज विद्यालय में उत्सव था।लेकिन वह जाना नहीं चाहता था। मां ने समझाया ” मोहन गुरुजी हमारे हालात से भली भांति परिचित हैं। तुम विद्यालय जाओ। वो तुम्हे उत्सव में अवश्य ही शामिल करेंगे। काम खत्म करके मै भी अा जाऊंगी तुम्हारे विद्यालय में। मां के बहुत समझाने पर मोहन विद्यालय चला गया।
दुःखी मन से मोहन विद्यालय पहुंचा तो गुरुजी रास्ते में ही मिल गए। देखते ही गले से लगा लिया। मोहन कुछ समझ पाता इससे पहले ही उन्होंने बोलना शुरू कर दिया। तुम्हारा बहुत धन्यवाद मोहन। तुम्हारे कारण ही इतना बड़ा आयोजन सफल हो पाया है। मोहन से अब रहा नहीं गया। उसने गुरुजी की प्रसन्नता का कारण जानना चाहा। गुरुजी ने उसके सिर पर हाथ फेरकर कहा ” बेटा तुम्हारे दोस्त गोपाल ने रात में आकर पूरा आयोजन कर दिया। इतना सामान लाया कि गांव में सबको कुछ भी लाने के लिए हमे मना करना पड़ा। दूध से सारे बर्तन भर दिए। इतनी खीर बन रही है कि पास के गांव में भी भेजनी पड़ेगी।” मोहन के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। ” गुरुजी अभी गोपाल कहां है ?” उसने आतुर होकर पूछा। “तुम्हारे घर ही गया है।” गुरुजी ने तुरंत उत्तर दिया। तब तक मोहन की मां भी अा चुकी थी। उन्होंने बताया गोपाल उनसे मिलने घर गया था और उसने ही उन्हें विद्यालय में भेजा है। मोहन बहुत खुश था परन्तु दुःखी भी था, उसका दोस्त गोपाल उससे बिना मिले ही चला गया था।
अर्चना त्यागी