राजनीतिक सफरनामा (कुशलेन्द्र श्रीवास्तव)
विधायकों को मौज-मस्ती करा दी गई है पर नहीं उनकी घेराबंदी कराई गई । क्या समय आ गया राजनीतिक दलों को अपने ही विधायकों पर भरोसा नहीं रहा । चाहे जब उन्हें घेर कर बंद कर दिया जाता है । विधायकों का भी जमीर नहीं जागता कि वे कह सकें कि ‘‘हमें नजरबंद क्यों कर रहे हो’’ । जनप्रतिनिधि अविश्वास की डोर पर संतुलन बनाकर सफर तय कर रहे हैं और वो हाईकमान जो प्रत्याशियों को डोक-बजाकर टिकिट देकर अपनी ओर से चुनाव लड़वाता है वह भी अंत में उन्हें सेदह के कोष्टक में घेर लेता है । ऐसे विधायक जिन पर खुद उनकी ही पार्टी भरोसा नहीं करती उन पर आम मतदाता कैसे भरोसा कर सकता है । वैसे भी विगत कुछ दशकों से चुने हुए जनप्रतिनिधियों ने जिस रह से ‘‘लुड़कने’’ का रिकार्ड बनाया है उसने लोकतंत्र को तो नुकसान पहुंचाया ही है साथ ही उन्हें नजरबंद कर ले की स्थिति तक भी पहुंचाया है । विधायक महंगे होटलों में आराम कर रहे हैं उनके मनोरंजन के ताम साधन उपलब्ध कराये गए । वे अपने चेहरे पर मासूमियत ओढ़े दिन काटते दिखे । पर इस गणित को कोई नहीं सुलझाया पाया कि उन पर होने वाले खर्च को किसने झेला । यह तो तय है कि खुद विधायकों ने इस खर्च को नहीं झेला होगा फिर कौन था जिसने करोड़ों रूप्यों का भुगतान किया । पार्टी नम्बर एक मे तो खर्चा दर्शा नहीं सकती और भले ही वे सत्ता में हो तो भी शासन के फंड को नम्बर एक में नहीं बता सकते । तब किस अदृश्य शक्ति ने इन महंगे होटलों का भुगतान कर दिया और इस घेराबंदी का कितना सुखद परिणाम प्राप्त किया ? राजनीतिक प्रश्न अक्सर अनुत्तरित ही रहते हैं । वैसे तो अब यह राजनीति का नया पैटर्न ही बनता जा रहा है जरा सी भी सुगबुगाहट होती है तो संदेह के घेरे में अपने ही विधायक आ जाते हैं वैसे इसका श्रेय भी इन्ही जनप्रतिनिधियों को जाता है जो अपने जमीर को कई बार गिरवी रखकर लोकतंत्र का मजाके बना चुके हैं । पबजी गेम घातक है पर चल रहा है । जाने कितने बच्चों ने इस गेम के चक्कर में अपनी जान दे दी है पर फिर भी गेम खेला जा रहा है और वैधानिक चेतावनी के बाबजूद भी नुकसान झेला जा रहा है । एक नाबालिग लड़के ने अपनी माॅ को सिर्फ इस वजह से मार दिया कि वो माॅ उसे गमे खेलने से रोकती थीं । यह हमारी विकृत होती संस्कृति और आनलाइन खेलों के प्रति बढ़ता रूझान इसे ही दर्शाता है । बड़े-बड़े क्रिकेटर जिन्हें समाज में नायक माना जाता है और फिल्मी दुनिया के हीरो आन लाइन खेलों की मार्केटिंग कर रहे हैं । क्या ये भी ऐसी घटनाओं के दोषी नहीं माने जाने चाहिए । इंटरनेट की दुनिया ऐसे आनलाइन गेमांे से भरी पड़ी है और ज्यादातर सितारे लोगों को प्रेरित कर रहे हैं कि वे इन खेलों को खलें । इंदौर का एक युवा लूडो खेलता है और बड़ी धनराशि हार जाता है । अंत में वह आत्महत्या कर लेता है । क्या लूडो खेलने के लिए प्रेरित करने वाले सितारों पर कार्यवाही नहीं होनी चाहिए । समाज को अब ऐसी कार्यवाही की मांग करना होगी तब हो सकता है कि इन खेलों के विज्ञापनों पर रोक लग सके । क्या विडंबना की बात है कि सितारे गुटखा पाउचों की ब्रांडिंग कर रहे हैं जिनके खाने से होने वाले नुकसान के बारे में बड़े-बड़े डाक्टर चेतावनी देते हैं । भार में हर साल होने वाली लाखों मौते ऐसे ही गुटखा और जरदा खाने से होती है । हर गुटखा और जरदा के पाउचों पर चेतावनी लिखी होती है फिर भी हमारे नायक हमें ऐसे गुटखा खाने के लिए पेरित कर रहे हैं । दोषी ये क्यों नही हो सकते ? आनलाइन गेम गांव में खेले जाने वाले जुा से ज्यादा ख्तरनाक है, फिर भी वह पाबंदी के बाहर है और हमारे नायक उनकी ब्रांडिंग कर रहे हैं । उन्हें लाखों रूपया इन विज्ञापनों का मिलता है । करोड़ों रूप्या कमाने वाले लाखों रूप्यों के चक्कर में पीढ़ी की पीढ़ी बरबाद करने पर तुले हुए हैं । एकाघ पर भी केस दर्ज हो जाए तो ऐसी ब्रांडिंग रूक सकती है । मध्यप्रदेश मे पूर्व मुख्यमंत्री शराब बंद कराने के लिए प्रयास कर रहीं हैं । वे उसी दल की नेता हैं जिस दल की मध्यप्रदेश में सरकार है । वे साध्वी हैं और तेजतर्रार नेता मानी जाती रही हैं । वे शराब दुकानों पर पत्थर फेंक कर अपने गुस्से का अहसास कर चुकी हैं । पर इसके बाबजूद भी प्रदेश सरकार पर इसका कोई अहसास होता नहीं दिख रहा है । प्रदेश में तो शराब की ‘‘होम डिलेवरी’’ भी प्रारंभ कर दी गई है चखना के साथ । आप घर पर बैठे रहें और आनलाइन आर्डर कर दें शराब आपके घर पहुंच जायेगी । एक शराबी को इससे ज्यादा और क्या चाहिए । वो पैसा खर्च करने तैयार है और सरकार पैसा पाने के लिए अपने नागरिकों को मौत का सामान घर पहुंचाने के लिए तैयार है । अब उमा भारती कहें या नाराज हों । प्रदेश में कमाई करने वाले इस द्रव्य को तो बंद किया जाना संभव ही नहीं लग रहा है । हर कोई बिहार के मुख्यमंत्री जैसे कठोर निर्णय नहीं ले सकता । नीतिश कुमार जी ने एक ही छटके में बिहार में शराब बंदी करा दी । ये अलग बात है कि वहां अब भी शराब बिक रही है ठीक ऐसे ही गुजरात में भी गाहे-बेगाहे शराब जप्त होती रहती है पर इसके बाबजूद भी बहुसंख्यक लोग शराब बंदी के चलते शराब नहीं पी पाते । मध्यप्रदेश में शरब बदंी की मांग जोर पकड़ रही है पर यह केवल मांग ही होकर रह जायेगी यह समझ में आने लगा है । किसी भी चीज को बंद किया जाना आसान नहीं होता । उत्तर प्रद्रेश में कानपुर बंद करने की घोषणा की गई और फिर जो कछ हुआ उसने सारे देश को हिलाकर रख दिया । दंगों का जो विकृत स्वरूप् वहां उभरकर आया उसने एक बार फिर चिन्तन-मनन करने को मजबूर कर दिया । सोची समझी रणनीति के तहत योजनाबद्ध ढंग से कानपुर दुगाईयों के हवाले हो गया वो भी तब जब प्रदेश के तेजतर्रार मुख्यमंत्री, देश के राष्टपति और प्रधानमंत्री भी कानपुर क ग्रामीण क्षेत्र में उपस्थित थे । कुछ घंटों तक हंगामा होता रहा । अब हंगामा करने वालों के साथ हिसाब चुकता किया जा रहा है । एक लम्बी-चैड़ी फेहरिस्त हाथों में लेकर अकधिकारी एक-एक को अरेस्ट कर रहे हैं । जो अरेस्ट हो रहे हैं उनका भविष्य क्या होगा इसका अंदाजा आम लोग लगा पा रहा है पर बाबजूद इसके उत्तरप्रदेश में एक कंलक तो लग ही गया है । ऐसी बहुत सारी परिस्थितियांे से बचना चाहिए । साम्प्रदायिक सौहाद्र का वातावरण इस देश की शान रहा है पर अब ऐसा नहीं रहा ऐसा महसूस किया जाने लगा है । कहा जाता है कि जबान से निकले शब्द कभी वापिस नहीं लौटते । जो निकल गया सो निकल गया पर इन निकले हुए शब्दों से जो नुकसान होता है उसकी भरपाई कठिन होती है । इसलिए बोलते समय सावधानी रखी जानी चाहिए । पर अब ऐसा हो कहा रहा है । बोलने वाले अब परहेज नहीं करते । ऐसे ही परहेज न करने वाले शब्दों का हंगामा बरस गया । इस हंगामें में उन लोगों ने भी सावधानी नहीं रखे जो शब्दों को तौल-मौल कर बोलने की सलाह दे रहे थे । हंगामा देश के बाहर भी गूंजा और फिर गूंजता ही रहा । वे नापक लोग भी इसमें हिस्सेदारी दर्ज कराने लगे जो अपने शब्दों मे कभी लगाम नहीं लगाते । फिर भी जो हुआ अच्छा नहीं हुआ पर इसकी प्रतिक्रिया में जो हुआ वह तो और भी बुरा हुआ । हो सकता है कि अब एक बार फिर शब्दों को सम्हालकर बोलने की परंपरा की शुरूआत हो जाए । एक समय लग रहा था कि रूस और यूके्रन का युद्ध बस कुछ ही दिनों में सिमट जायेगा पर युद्ध तो इतना लम्बा चल गया कि अब आम लोगों की उत्सुकता से बाहर हो गया । टी.व्ही में कुछ दिनों तक युद्ध का हंगामा खड़ा होता दिखाई देता रहा फिर वे बेचारे भी सिमट गए । कब तक वे कैमरा लेकर इस झूठी संभावना पर विमर्श करते रहेगें कि बस अब यूकेन हारा गया है । सभी जानते हैं कि दरअसल युद्ध यूक्रेन कहां लड़ रहा है वो तो केवल एक मोहरा है बाकी जो-जो देश इस मोहरे के कांधे पर बंदूक रखकर चला रहे हैं उनसे कोई अंजान नहीं है । यूद्ध अब आराम से चल रहा है किसी को कोई जल्दबाजी नहीं है ठीक वैसे ही जैसे फुरसतिया लोग आराम से काम करते रहते हैं । दिनभर पल-पल की खबरें देने वाले टी.व्ही चैनल वाले भी उब चुके हैं वे अब अपने सामान्य रूटीन पर आ चुके हैं । युद्ध चल रहा है आराम से कब खत्म होगा अब कोई भी इसकी भविष्यवाणी नहीं कर रहा है । पर इतना तो है कि जो कुछ हो रहा है वह सही नहीं हो रहा है । दुनिया में जो बहुत सारा गलत हो रहा हैं उसमें एक बिन्दु यह भी है ।