देवेन्द्र कुमार पाठक
तिरंगा तीन रंगों से बना है.केसरिया,सफेद औऱ हरा. इसके बीच में अशोक चक्र है, जिसमें चौबीस तीलियाँ हैं. जब तिरंगा खुली हवा में आकाशीय ऊँचाई पर फहराया जाता है, तब हमारी यह संकल्प भावना होती है कि हम सब देशवासी चौबीस घण्टे,यानी दिन-रात देश की प्रगति के लिये पूरी निष्ठा और ईमानदारी रखते हुये अपनी शक्ति,सामर्थ्य भर अपने अपने दायित्वों का निर्वहन करँगे. हमारी यह भरसक कोशिश रहेगी कि देश की अहर्निश प्रगति,समृद्धि शांति,स्वतंत्रता,देश की सीमाओंऔर एकता की रक्षा के लिये हम अदम्य साहस,अद्वितीय शौर्य के साथ किसी भी संकट,चुनौती का डटकर सामना करेंगे. अपनी एकता,अखंडता और आजादी की रक्षा के लिए अपने प्राण भी बलिदान करने से पीछे नहीं हटेंगे.
तिरंगे का पहला केसरिया रंग हमें प्रेरित करता है कि देश का प्रगति -चक्र तब ही अहर्निश, अबाध और चलेगा जब सभी देशवासियों में आपसी एकता,शांति,भाईचारा,प्रेम,सहयोग और विश्वास होगा. आज देश में जिस प्रकार की धार्मिक -मजहबी असहिष्णुता, साम्प्रदायिक संकीर्णता व्याप्त है. हमारी सीमाओं पर पड़ोसी देशों की गतिविधियां हमारी सेनाओं के लिए बड़ी चिंता का कारण है. एक अघोषित आपातकाल के दौर से गुज़र रहा है देश. ऐसे दुष्काल में जब अशांति,खराब अर्थव्यवस्था,बेरोजगारी, निरन्तर घटता विदेशी मुद्रा भंडार, चंद धनकुबेरों के हाथों गिरवी होते सार्वजनिक उपक्रम…..ऐसी अस्थिरता में देश की एकता,अखंडता, नागरिक अधिकारों की अवमानना, कानून और संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग तथा भय के माहौल में हम कैसे प्रगति चक्र की निरंतरता कायम रख सकते हैं.कैसे नागरिक अधिकारों की रक्षा के संकल्प को सार्थक कर सकते हैं?
तिरंगे का श्वेत रंग यही संदेश देता है.किसी भी देश की .समृद्धि उसकी जनश्रमशक्ति,व्यापार,कृषि,भूमि,वन, खनिज संपदा, उद्योग, उत्पादन और सुदृढ अर्थव्यवस्था से सुनिश्चित होती है. लोगों के हाथों को काम और प्रगति के पर्याप्त अवसर उपलब्ध होने से ही देश के लोग शिक्षित,स्वस्थ और खुशहाल होंगे.इस खुशहाली तथा समृद्धि को तिरंगे में हरे रंग से दर्शाया गया है.
अशोक चक्र,उसकी चौबीस तीलियाँ,और तीनों रंगों के अन्तर्सम्बन्ध हैं. देश की खुशहाली और समृद्धता के लिए आपसी सद्भाव,एकता,शांति,सहयोग जरूरी है.इस एकता, सम्पन्नता,स्वतंत्रता की रक्षा के लिए नागरिकों में साहस,शौर्य,पराक्रम एवम आत्मोत्सर्ग होना अत्यावश्यक है, आज देश की युवाशक्ति के सेना में भर्ती होकर देश के लिए मर मिटने के ज़ज़्बे को हतोत्साहित होना पड़ा है.वह भारी चिंतनीय है.जिसका प्रतीक केसरिया रंग है. वह पराक्रम,शौर्य,बलिदान का भाव ही हार रहा है. विज्ञान के इस युग में सामाजिक सोच,समझ और सम्वेदन को पाखण्ड,धर्मांधता अपनी गुंजलक में ले चुकी है.
तिरंगा लहराने का आशय यह है कि हम अपनी प्रगति,खुशहाली,शांति,एकता,स्वतंत्रता और निरन्तर परिश्रम को लेकर गौरवान्वित हैं.
यदि हम किसी शासनादेश से मानसिक दबाववश तिरंगा फहराते हैं,हमारे ज़हन,सोच, समझ और हृदय में इन रंगों और अशोक चक्र के संदेशों को लेकर कोई आत्मबोध नहीं है,तो इस तरह ध्वज फहराने की कोई सार्थकता नहीं है.अपने देश के प्रति अनुराग हमारे नागरिकबोध से पनपता है.नागरिकबोध आत्मानभूति से जनमत है.जब हम देश की व्यवस्था- सत्ता के द्वारा किये गए जनहित के कार्यों को लेकर प्रसन्नता ओर संतोष भावना से परिपूर्ण होते हैं, जब हमें स्वस्थ,निरापद परिवेश में अपनी अभिव्यक्ति की आजादी, स्वास्थ्य,शिक्षा,रोजगार के समुचित अवसरऔर जीवन यापन की बुनियादी सुविधायें राज्य से प्राप्त होती हैं,तो स्वाभविक रूप से हमारा नागरिक बोध जाग्रत होकर हमें अपने देश के प्रति गर्व की सुखद अनुभूति से भर देता है और हमारे अन्तर्मन से देश के प्रति अनुराग जाग्रत होता है. उस क्षण हमें कोई न भी आदेशित करे तो भी हम अपने राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति अपने मनोभावों के आवेग को रोक नहीं पाते.मेरे विचार,व्यवहार में इन रंगों और अशोक चक्र के संदेशों को एक दिन नहीं हर समय व्यक्त होना चाहिये. औपचारितावश एक,दो या तीन दिन के किसी अवसर विशेष पर इस तरह राष्ट्रीय तिरंगा ध्वज का सम्मान करने या लहराने से अपने नागरिक दायित्व का सफलता से निर्वहन कर लेने का थोथा वहम कोई अर्थ नहीं रखता. किसी कार्य की सफलता से ज़्यादा अहमियत उसकी सार्थकता में हैं.