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पावन शिक्षक दिवस पर समर्पित चंद शब्द-पुष्प:

कृष्णजैसा सारथी जब अर्जुन को मिला,

युद्धभूमि में तब गीता का उद्घोष हुआ.

तब एकआज्ञाकारी शिष्य सा था कुंतीपुत्र,

गुरु के रूप में देवकीनंदनको आना पड़ा.

अन्याय,अत्याचार और भयंकर भ्रष्टाचार;

जब भी समाज में निर्बाधबढ़ने लगता है.

गिरिधारी सा गुरु और पार्थ साविद्यार्थी,

काल के कोख सेतबतुरंतपैदा होता है.

बिगड़ती हुई व्यवस्था को पटरी परलाना,

प्रत्येकयोग्य शिक्षक का पवित्र कर्तव्य है.

ज्ञान-दानकेदरम्यानमन सदा शुद्धरहे,

तदुपरान्त ज्ञानालयका प्रयास सार्थक है.

शिष्यको चाहिएसव्यसाची सा समर्पण,

जहाँनहींमोह-ममतानकोई रिश्ता-नाता,

ऎसीही मंशा माँ शारदे की भीरहती है,

जिससेगुरु-शिष्य का सम्मान बढ़जाता.

डॉक्टर सुधीर सिंह

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