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चेहरा उसका शगुफ़्ता सा गुलाब लगे है…

चेहरा उसका शगुफ़्ता सा गुलाब लगे है

उजली शब का वो मुनव्वर माहताब लगे है l

जब भी देखा है उसे तारीकियों से लड़ते

वो फ़लक पर इक चमकता आफताब लगे है l

क्या करें तारीफ़ हम उस जल्व ए जाना की

सिर से पाँ तक जो ग़ज़ल की इक क़िताब लगे है l

सब बताना तो नहीं मुमकिन जुबानी कह कर

ख़ामुशी हर बात पर उस का जवाब लगे है l

हो रहा तारी नशा सारे वज़ूद पे उस का

ज्यों फ़िज़ाओं में घुली कोई शराब लगे है l

उजली शब में आसमाँ पर अभ्र का इठलाना

चाँद के रुख़सार पर बेज़ा हिजाब लगे है l

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अजय कुमार पाण्डेय

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