प्रीति आठ महीने के गर्भ से थी। यह उसका तीसरा बच्चा था। पहले से ही उसकी दो बेटियाँ थी। जिन्हें वह खूब लाड प्यार करती थी। उसकी इच्छा नहीं थी कि वह और संतान पैदा करें। लेकिन सास की पोते का मुंँह देखने की लालसा से उसे यह करना पड़ा। प्रीति के पति आयुष भी अपनी बेटियों को बहुत प्रेम करते थे। कोई भेदभाव नहीं रखते थे।
साधना जी पोते की होने की आशा में पूजा-पाठ ,कर्मकांड भी करवाती रहती थी।
प्रीति का मन आशंकाओं से घिर जाता था कि कहीं इस बार भी लड़की ना हो जाए। डिलीवरी का समय आ गया और उसने फिर एक सुकन्या को जन्म दे दिया। सास साधना जी को तो ‘काटो तो खून नहीं’ वाली स्थिति हो गई। उन्होंने तो पोती का मुंँह देखने से भी इंकार कर दिया।
तभी डॉक्टर रश्मि अंदर आती हैं। साधना जी को बधाई देते हुए कहती हैं। “माँ जी आप बहुत भाग्यवान हैं। आपके घर नवरात्रों में कन्या आई है। लक्ष्मी पैदा हुई है आपके।
साधना जी का मुंँह बिगड़ जाता है। काहे की लक्ष्मी, तीसरी पोती हुई है। ना जाने में पोते का मुंँह कब देखूंगी।
डॉक्टर रश्मि साधना जी को समझा कर कहती हैं मांँ जी आप यह कैसी बातें कर रही हैं। हम तो खुद पांच बहनें हैं। हमारे माता-पिता ने कभी भेदभाव नहीं किया। हम सभी को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया। बेटियां ईश्वर का वरदान है जो किस्मत वालों को ही मिलता है। आप दकियानूसी बातों को छोड़िए और नवजीवन का स्वागत कीजिए जो खुशियों की ओर खड़ा है।
डॉक्टर रश्मि फिर साधना जी को समझा कर कहती हैं मांजी क्या आप देवी की पूजा नहीं करती।
साधना जी तुरंत कहती हैं,”देवी माता की पूजा कौन नहीं करेगा? वही तो जगत जननी है”।
डॉ रश्मि कहती हैं,”माँ जी देवी भी तो कन्या का ही रूप है। जब आप देवी के रूप में तो कन्या को पूज सकते हैं। घर में कन्या होने पर इतना तिरस्कार क्यों?
आज की कन्या ही कल की जननी होगी। अगर आज कन्या पैदा ही नहीं होगी तो जगत का निर्माण कैसे होगा। हमें अपनी सोच को बदलना होगा। और भगवान की दी हुई सौगात को स्वीकार करना होगा।
साधना जी को डॉक्टर की बात समझ में आ गई और उन्होंने पोती को सीने से चिपका लिया। प्रीति ने भी चैन की सांस ली।
नवजीवन उन्हें खुशियों की ओर ले आया।
प्राची अग्रवाल
खुर्जा उत्तर प्रदेश