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कहानी : विश्वास

राजीव  करीब  काम में फस कर दो साल से घर नहीं आ पा रहा था । सारी सुविधाओं के बीच भी रेनू विरह  की वेदना झेल रही थी। उसके ऊपर राह चलते आने -जाने वाले लोगों का ताना मानो हर दिन एक नई ही कहानी सुनने को मिल जाती, लेकिन वह अपना दर्द कभी राजीव तक न पहुंचने देती।

     परंतु आज संध्याकाल गंगू चाची की बात सुन वह खुद को रोक न सकी और फौरन राजीव को फोन कर दिया। बोली –” “ऐसी नौकरी का क्या करना जिसमें परिवार से ही दूर रहना पड़े!”

(आश्चर्य से)

..” क्या हो गया अचानक मेरी रेनू को, इतनी बड़ी बात! याद  आ रही था क्या ?”

…”जी , याद तो हमेशा ही आती है, लेकिन लोगों की बातों ने आज मेरे विश्वास को हिला दिया “

…ऐसा किसने क्या कह दिया?

… रेनू लोगों का क्या सुनना, उनका  तो काम ही है कहना! वह कुछ भी बोलते हैं…

… मगर आप  भी तो!आते ही नहीं!

…अच्छा रुको ,प्रयास करता हूं !

          कुछ  दिनों के बाद वह  घर पहुंचा। सपरिवार खुशी का ठिकाना न रहा।

   अगले दिन ही संध्या काल वह सबको लेकर सब्जी मंडी, मॉल  घूमते हुए मिठाई का पोटला  लिए गंगू चाची के घर पहुंचे।

….चाची जी,

….हां बेटा ,

…देखो कौन आया है?

… वाह राजीव  ,

…जी नमस्कार

 ….नमस्कार बैठिए।

….बहुत अच्छा हुआ जो आप आए ! मुझे तो डर ही लग रहा था कि इतने दिन हो गए,आप आ  क्यों नहीं रहे!

….हां ,लोगों की बातों के कारण ही मैंने आपको बुलाया, लेकिन डर किस चीज का चाची,

… नहीं ऐसे ही !  कहिए  न, डर क्यों आखिर?

 … लड़की का.., चाची वहां यदि कोई मेरी जैसी हो भी तो उससे मेरा क्या?  वह  हमारी जरूरतों को तो पूरा कर ही रहे हैं! वहां रहना उनकी मजबूरी है ,और उनकी अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए यदि किसी का सहारा लेना  भी पड़े, तो उनका पूरा ख्याल रखना भी हमारा  ही कर्तव्य है । हम  औरतें अपनी चंद खुशियों के लिए सामने वाले से इतनी कुर्बानी की उम्मीद  क्यों करते हैं?  उन्हें भी तो उनकी जिंदगी दोबारा नहीं मिलेगी। 

     चाची  जी सब कुछ समझ रही थी कि उनके व्यंग्य के कारण ही रेनू  इतना  कुछ कह रही है।

…. चाची कहने लगी,.किस मिट्टी की बनी हो तुम !! तुम्हारी सोच कि मैं दाद  देती हूं , लेकिन तुम जैसे सोच  यदि हर बेटी को  हो तो पति- पत्नी के बीच के 95% झगड़े  यूं ही समाप्त हो जाएंगे।

… राजीव मुस्कुराकर सब कुछ सुनता रहा, फिर बोला—  चाची की बात तो 100 टके की है ,फिर औरतों को तो अपनी मर्दों से कोई शिकायत होगी ही नहीं !

लेकिन मेरी अर्धांगिनी की सोच इतनी ऊंची है , मैं यह जानकर धन्य हुआ ! कोई कुछ भी कहे : मेरी तो एक ही प्यारी सी बीवी है । गंगू चाची और  रेनू दोनों के चेहरे पर मुस्कुराहट  देख राजीव शाबाशी का हाथ थामे बेटे और रेनू को वहां से लेकर घर को चल दिया….

       डोली शाह

    हैलाकंदी,असम

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