परीलोक से परियों की नन्ही शहजादी आई,
नन्हे हाथों के नन्हे पंखों से उड़ कर आई।
उससे बातें करते रहना,
कितना अच्छा लगता,
जी भर कर देखें उसको पर,
कभी नहीं जी भरता।
इंद्रलोक की सबसे सुंदर सूरत लेकर आई।
घर के मधुबन की क्यारी में ज्यों बसंत ऋतु आई।
परीलोक से परियों की नन्ही शहजादी आई।
सुंदर हीरे मोती सी है,
नाजुक ओस बूंद जैसी है,
वो गुलाब की पंखुड़ियां से,
आती हुई महक जैसी है।
देवलोक से इक नन्ही साक्षात् लक्ष्मी आई।
नन्हे हाथों में खुशियों के स्वर्ण कलश वो लाई।
परीलोक से परियों की नन्ही शहजादी आई।
कभी प्यार से देखा करती,
कभी-कभी मन में कुछ कहती,
अंखियों को मूंदे मूंदे ही,
धीरे धीरे वो मुस्काती।
स्वप्नलोक से सबके सपने पूरे करने आई,
सोने के दिन चांदी की रातें लेकर वो आई।
परीलोक से परियों की नन्ही शहजादी आई।
गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट ग्वालियर