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गरीबो का ये कैसा जालिम कहर है ।

गरीबों से पूछो क्या होती गरीबी है।

गरीबी की हालत उन्हीं को पता है।

जिसे दर – दर की ठोकर खिलाती गरीबी

गरीबी तो फांसी से बढ़कर सजा है ।

मालिक गरीबी को काहे रचा है।

गरीबों के तन को देखाती गरीबी

कितना बचा है वजन को देखाती गरीबी

खाने को कोई चारा नहीं है।

पीने को आंसू पिलाती गरीबी है।

तन पर फटा जो पुराना पड़ा है।

कलेजा निकल कर गले में अड़ा है।

अमीर तो अमीरी से तन कर खड़ा है।

गरीब तो वर्षों से भूखा पड़ा है।

गरीबो को भीखे भी मिलती नहीं है।

गरीबों के घर चूल्हे जलते नहीं है।

गर्मी में ऊपर से तपता है सूरज

ठण्डी में नंगा घुमाती गरीबी है।

बर्षा में नदियां दिखाती गरीबी है

गरीबी की बहुत जालिम कथा है

झेला है जिसने उसी को पता है।

अमीरो के विस्तर मकमल के होते हैं।

गरीबो के विस्तर नंगे सड़क के होते हैं।

चूल्हे की आग हरदम पेटो में जलती

हल्की नही हरदम लपटों में जलती

अमीरो के हाथो में सत्ता का शासन

गरीबों को मिलता न खाने का राशन

गरीबों को हरदम सताया गया है।

सड़को पर फिरते हैं पाते हैं गाली

गरीबों का ये कैसा जालिम कहर है।

गरीबी का आलम उन बच्चों से पूछो

जो सड़को पर रोते लावारिस पड़े हैं

हाथों में होती है रोटी का टुकड़ा

तो कुत्ते भी छीने को ताने खड़े हैं।

गरीबी गरीबों का वतन‌ छीन लेती

मुर्दे से लिपटा कफन छीन लेती

अमीरो के मरने से रोती है दुनिया

गरीबों का ये कैसा जालिम कहर है।

राजेश साहनी

लेदौरा गहजी आजमगढ़

उत्तर प्रदेश

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