बृजेश जी और उनकी पत्नी अनिता जी दोनों मिलजुल कर अपनी गृहस्थी चला रहे हैं। बृजेश जी एक सरकारी कॉलेज में लेक्चरार हैं। स्कूल में भी बच्चों को अच्छी तरीके से पढ़ाते हैं बृजेश जी और अपने बच्चों पर भी उनकी परवरिश पर दोनों पति-पत्नी ने पूरा ध्यान दिया है। आज इन्हीं दंपति की मेहनत का नतीजा है कि बच्चे उच्च पदों पर पहुंच गए हैं। दूर तो रहते हैं क्योंकि काम हमेशा घर के पास नहीं मिलता। होम सिकनेस भी कब तक रखी जाएगी। इसलिए मन को तो मजबूत करना ही पड़ता है।
एक दिन दोनों एक विवाह समारोह में जाते हैं। वहां से लौटने में थोड़ी जल्दी करते हैं तो उनके एक परिचित उन पर तंज करते हुए कहते हैं, “अरे मास्टर साहब घर जाने की ऐसी भी क्या जल्दी है? घर पर कौन से तुम्हारे बच्चे रो रहे हैं। सब बाहर ही तो रहते हैं। आराम से चले जाना।”
वह परिचित शहर के नामी गिरामी रहीसों में गिने जाते हैं। उनकी पत्नी भी उनकी हां मे हां मिलाती हुई तेजी से हंसने लगती है।
बृजेश जी बड़ी शांति से उत्तर देते हुए कहते हैं, “अरे ऐसी कोई बात नहीं है। वह बच्चों का फोन आएगा ना। हमने एक घंटा फिक्स कर रखा है फोन पर बात करने के लिए। बच्चे चाहे दूर रहते हैं बेशक लेकिन 1 घंटे सारा परिवार कॉन्फ्रेंस कॉल पर अपनी सारी गतिविधियां शेयर करेगा। इससे हमारा पारिवारिक जुड़ाव आपस में एक दूसरे से बना रहता है। बच्चे दूर रहते हैं लेकिन फिर भी पास ही महसूस होते हैं। इसलिए ही हम जाने की जल्दी कर रहे हैं क्योंकि बच्चे फोन करेंगे।”
उनकी बात सुनकर उनके परिचित पांडे जी को बड़ा अचरज होता है क्योंकि उनके घर में तो उनका बेटा कई-कई दिन तक
बात ही नहीं करता है। बहू का भी अधिकांश मुंह फूला ही रहता है।
छोटा बेटा तो आधुनिकता की दौड़ में इतना अंधा हो रहा है कि उसने तो अपना जीवन व्यसनों के हवाले ही कर दिया है। कुछ कहते ही लड़ने को आता है।
गलती उनकी भी तो रही। पैसा कमाने की अंधी दौड़ में बच्चों को समय देना ही भूल गए। जब उनके पास समय नहीं था बच्चों के लिए और आज उनके बच्चों की जिंदगी में उनकी कोई अहमियत नहीं। बच्चे मतलब भी रखते हैं तो मात्र उनकी दौलत के लिए।
बृजेश जी की बातें सुनकर पांडे जी आज अपने आप को बड़ा कमतर महसूस करते हैं।
प्राची अग्रवाल
खुर्जा बुलंदशहर उत्तर प्रदेश