जी हाँ, अबकी बार 400 पार का नारा इतनी पहले से और आखिरी वोटिंग तक दिया जाता रहा मेन मीडिया जिसको कुछ लोगों द्वारा गोदी मीडिया भी कहा जाने लगा है, ने भी बढ़ चढ़कर समर्थन किया और नारे की आवाज को बुलन्द करने में अपनी भूमिका निभाई। समाचार चैनलों की वार्ता में, ज्योतिषीय विश्लेषण में मानो हवा एक तरफा चलने लगी थी।
यहाँ तक कि एक्जिट पोल में भी मीडिया ने 400 पार से कहीं ज्यादा पहुँचाने का अनुमान बताकर एक बार को शेयर मार्किट में बढ़त का तूफान ला दिया और अगले ही दो दिन में यानि 4 जून को जब वोटों की गिनती शुरु हुई तो आधे दिन तक ही साफ होने लगा था कि ‘ अबकी बार 400 पार’ नहीं ‘अबकी बार हुए न पार’ होने जा रहा है। काँग्रेस की बात करें तो राहुल गाँधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा का असर दिखाई दिया और लगभग डबल सीटें लाकर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में उत्साहवर्द्धन का काम किया। जहाँ भाजपा की ओर से दावे के साथ कहा जा रहा था कि राहुल गाँधी वायनाड और रायबरेली दोनों सीटों से हारेंगे, वहीं उसके विपरीत उन्होंने दोनों सीटें बहुत अच्छे अन्तर से जीती हैं। यह बात अलग है कि अब कौन सी सीट छोड़ेंगे इस पर मंथन चल रहा है।
भाजपा की ओर से मीडिया में भी गरज गरज कर कहा गया कि राहुल गांधी डर कर भाग गये, अमेठी सीट डर के कारण छोड़ दी। ऐसा कहने वालों के मुँह पर ताला लगा दिया जनता ने। किशोरी लाल शर्मा जो पिछले 4 दशक से अमेठी से जुड़े हैं, वहां कांग्रेस के चुनाव का प्रबंधन करते रहे हैं। उनसे ही स्मृति इरानी जी को बहुत बड़े मार्जन से मुंह की खानी पड़ी। मतलब साफ है कि नारा हारा जनता जीती है इस बार। जनता ने अपने विवेक का प्रयोग कर सोच समझकर अपने मत का प्रयोग किया। उत्तर प्रदेश जहाँ पूर्ण शत्प्रतिशत जीत का दावा भाजपा करती रही, वहां की बुलडोजर सरकार पर भी जनता ने सोच समझकर मतदान किया और कांग्रेस को अच्छी बढ़त दिलाई और सपा नेता अखिलेश यादव की मेहनत पर पुष्प अर्पित कर उन्हें अच्छी खासी जीत दिलाई जिससे इंडिया गठबंधन भाजपा के आसपास ही आया है 234/240 बस यही अंत है।
वैसे तो हर बार एनडीए सरकार हलके स्वरों में किन्तु मोदी सरकार (भाजपा) प्रबल स्वर में छाया रहा था। किन्तु तीसरी बार एनडीए सरकार का नारा प्रबल हुआ क्योंकि भाजपा इस बार बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई और अबकी बार हुए न पार के नारे के साथ मनमसोस कर एनडीए के साथ तालमेल कर सरकार बनाने की पहल की। हालांकि अपने बूते मनमानी से प्रत्येक निर्णय करने के बाद अब प्रत्येक बड़े निर्णय पर साथियों की भी सहमति आवश्यक होगी जो नया अनुभव होगा विशेषकर मोदी जी के लिऐ।