कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
धीरेन्द्र शस्त्री और फिल्म पठान चर्चाओं में आ गई । जो चर्चाओं में आ जाता है वह फेमस हो जाता है । किसी के भी प्रसिद्ध होने के लिए यह सबसे आसान तरीका होता है । पूरी मीडिया धीरेन्द्र शास्त्री के हर क्रियाकलाप को दिखाने लगी । धीरेन्द्र शास्त्री अपनी हुकार से अपने आत्मविश्वास को दिखाने लगे । धीरेन्द्र शास्त्री के चक्कर में गुमनाम सुहानी शाह भी चर्चाओं में आ गई । वो तो अपे जादू के शो बहुत पहले से कर रही थी पर इतनी ख्याति उसे कभी नहीं मिली, पर धीरेन्द्र शास्त्री के चलते वह भी प्रसिद्ध हो गई । वह न्यूज चैनलों के आफिसों में बैठकर अपनी कला का प्रदर्शन करने लगी । श्याम मानव जी भी इंटरव्यू देते दिखाई देने लगे । ऐसा लगने लगा कि सारे देश का भविष्य इस बात पर ही टिका है कि धीरेन्द्र शास्त्री जी अंधविश्वास फेला रहे हैं अथवा अपनी धार्मिक परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं । धीरेन्द्र ष््राास्त्री अपनी गादी पर बैठकर ‘‘ठइरी बंधे’’ इतने आत्मविश्वास से कहते हैं कि जिसको कह रहे हैं वह घबरा जाए और जो सुन रहे हैं उन्हें मजा आ जाए । धीरेन्द्र ष््राास्त्री जी बुंदेलखंड से आते हैं तो उनकी भाषा में बुंदलेखंडी शामिल रहती है । ठठरी बंधे ठेठ बंुदेलखंडी शब्द है । उनके बुंदेलखंडी कहने में कोई जादू नहीं है वह तो उनकी अपनी भाषा है पर उस भाषा पर भी सवाल खड़े होने लगे । हम तो 21 वीं सदी के देसरे दशक के भी तीसरे साल में पहुंच चुके हैं पर अपनी मानसिकता को अभी पुरानी सदी की मानसिकता के साथ चला रहे हैं । जादू अंधविश्वास और कलाकारी सारे के तानेबाने एक ही धागा से निकलते हैं । व्यक्ति जब परेशान होता है तो वह हर उस जगह जाकर माथा टेकता है जहां उसे अपनी परेशानी से छुटकारा मिल जाने की उम्मीद होती है । धीरेन्द्र शास्त्री जी का दरबार भी उन्हीें लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है, उनका विश्वास उन्हें अपनी परेशानियों से निजात दिलाता है । सुहानी शाह और उसके जैसे और भी माइंड रीडर केवल अपनी कला से दूसरे का दिमाग पढ़ लेते हैं । उनकी कला उनके व्यवसाय का हिस्सा है । धर्म अलग और कला अलग दोनों को एक साथ जोड़कर कैसे देखा जा सकता है । पर जो भी हो धीरेन्द्र शास्त्री को कम समय में ही इतनी प्रसिद्धि मिल गई कि अब वे वीवीआईपी की श्रेणी में आ गए । यदि वे चर्चाओं में आये बगैर ऐसा करते तो उन्हें समय लगता । इधर सुहानी शाह भी अल्प समय के लि प्रसिद्धि पा गई । वे भी आभारी होगीं धीरेन्द्र शास्त्री जी की । पठान फिल्म पर विवाद बहुत समय से चल रहा था जब उसका केवल ट्रलर ही लांच हुआ था । यह विरोध इतना बड़ा कि प्रधानमंत्री जी को भी इसके बारे में कुछ बोलना पड़ा । किसी को यह समझ में आज भी नहीं आया है कि आखिर इस फिल्म का विरोध किया क्यों जा रहा था । किसी ने फिल्म तब देखी ही नहीं थी जब से उसका विरोध होना प्रारंभ हुआ था पर एक ने किया तो बहुत सारा समूह विरोध में खड़ा हो गया और फिल्म विवाद में कम चर्चाओं में ज्यादा आ गई इसकी परिणति यह हुई कि फिल्म ने कमाई के रिकार्ड बनाने शुक्ष् कर दिए । फिल्म निर्माता अपने प्रचार में जितने पैसे खर्च करते वह तो उन्हें बच ही गए उल्टे उन्हें फायदा ही होने लगा । जिस दिन फिल्म रिलीज हुई उस दिन बहुत सारी जगहों पर बहुत सारे लोग सिनमा घरों के सामने अपना विरोध दर्ज कराते दिखाई देने लगे । परणिाम यह हुआ कि उस जगह के लोग पठान फिल्म देख ही नहीं पाए पर वे बाद में देख लेगें क्योंकि कोई न कोई चैनल ने उसे दिखाने के लिए खरीद ही लिया होगा । टी.व्ही चैनलों पर फिल्म के प्रदर्शन को बंद नहीं करा जा पा रहा है । लालसिंह चडढा भले हीसिनमेाघरों में न चल पाई हो पर कलर टीव्ही ने उसे इतनी बार दिखा दिया कि हो सकता है उन्होने भी उसे टी.व्ही पर ही देख लिया हो जो उसका विरेध कर रहे थे । ऐसे ही वे पठान भी देख लेगें । भारत का बालीबुड सारे विश्व में प्रसिद्ध रहा है पर विगत कुछ सालों से उस पर ग्रहण कर लग चुका है, फिल्में बनती हैं और विवादों में आ जाती है, जो फिल्में वाकई विवाद योग्य होती हैं वे तो डिब्ब्े में रखा जाती हैं, पर जो फिल्में विवादों में केवल किसी गल्ती के कारण आती हैं वे अपनी कमाई का रिकार्ड बना लेती हैं । ऐसे में अब हमें सोचना तो होगा कि हम सभी फिल्मों का विरोध न करते हुए कैसे कोई और रास्ता अपनाएं ताकि हमारा विरोध भी दर्ज हो जाए और फिल्म को अनावश्यक चर्चा भी न मिले । राहुल गांधी की यात्रा अंततः पूरी हो गई । अब वे अपनी बेतरतीब ढंग से बढ़ चुकी दाढ़ी कटवा लेगें । उन्होने दाढ़ी क्यो बढ़ाई यह समझ में नहीं आ रहा हो सकता है कि उन्हें यात्रा के कारण समय नहीं मिल रहा हो अथवा वे चाहते हों कि उनकी टीशर्ट की तरह दाढ़ी भी चर्चाओं में आ जाए । भीषण ठंड के बावजूद भी वे अपनी सफेद टीशर्ट के ऊपर एक स्वेब्र तक नहीं पहन पाए । या तो वाकई उन्हें ठंड नहीं लगी होगी अथवा उनकी टीशर्ट इतनी चर्चाओं में रहस्यमयी बन चुकी थी कि वे उसके चक्क्र में ठंड से कांपते रहने के बावजूद भी उते उतार न पाए हों । टीशर्ट का रहस्य तो खत्म हो जायेगा पर इस बहाने मिली उन्हें प्रसिद्धि काम आयेगी । राहुल गांधी ने जब भारत जोड़ो यात्रा प्रारंभ की थी तब उन्हें भी भरोसा न रहा होगा कि उनकी यात्रा सफल हो ही जायेगी । पर जैसे-जैसे करांवा आगे बढ़ता रहा उनकी यात्रा में लोग जुटने लगे और यात्रा चर्चाओं में आ गई । उनका सहज सरल और देशी मिलनसारिता लोगों को पंसद आई । किसी के कांधे पर हाथ और किसी के बच्चे को गोदी में उठाए उनके फोटो बहुत वायरल हुए । कांग्रेस भी इस यात्रा के बहाने एकजुट होती दिखाई दी । यह कांग्रेस के लिए तो सुखद है क्योंकि जिन परिस्थितियों में वे यात्रा पर निकले थे स समय कांग्रेस की हालत बहुत दयनीय होती जा रही थी । किसी भी कांग्रेसियों को समझ में नहीं आ रहा था कि इतने बिखरे संगठन को वे कैसे एकजुट करें । जिसे मनाने जाओं वह ही पार्टी छोड़ने तैयार दिखाई दे रहा था भले ही वे दूसरी पार्टी में हांसिए पर दिखाई दें पर अपनी पार्टी को कमजोर करने का संकल्प उनके नजरों में था । इस यात्रा ने कम से कम ऐसे नेताओं को के पैर कुछ समय के लिए थाम दिए हैं अब वे ‘‘और देख लो ’’ के भरोसे पार्टी छोड़ने के अपने मूड को त्याग चुके हैं । किसी भी पार्टी के किसी भी नेता के पास अपनी पार्टी छोड़ने के बाद एक ही ठिकाना होता है वह है भाजपा । भाजपा भी तंग आ चुकी होगी रोज-रोज नेताओं को अपनी पार्टी में सम्मलित करते हुए । एक केसरिया गमछा और ओठों पर ओढ़ी मुसकान के साथ दूसरी पार्टी से आए लोगों का स्वागत किया जाता है इसके बाद जो नेता आया है वह कहां गुम हो गया किसी को दिखाई ही नहीं देता । भाजपा में इती भीड़ है कि भाजपा के ही अपने पुराने नेता गुम होते दिखाई देने लगे हैं, फिर ये जबरन घुस आए नेताओं को कतार में कहां स्थान मिलेगा । पर भाजपा में नेता आ रहे हैं और कहां जायेगें बेचारे, वे आते हैं मुधरु मुस्कान बिखरते हैं अपनी पुरानी पार्टी के बारे में कुछ-कुछ बोलते हैं और फिर भाजपा की लम्बी कतार में लगकर अपनी बारी के आने का इंतजार करने लगते हैं । उनकी बारी आयेगी ऐसा मुगालता पाल लेना उनकी अपनी मजबूरी है । कांग्रेस ने नया अध्यक्ष बना दिया, कांग्रेस ने राहुल गांधी की यात्रा करा दी और अब वे फिर जीवित दिखाई देने लगे हें । लोकसभा के चुनाव आने हैं, इन चुनावों में कांग्रेस कहां खड़ी दिखाई देगी तो यह तो नहीं कहा जा सकता पर इतना तय है कि वह अपनी उपस्थिति अवश्य ही दर्ज कराने की स्थिति में पहुंच चुकी है । यह उपलब्धि भी कम नहीं है । विपक्ष एकजुट होने का प्रहसन करने लगा है पर ऐसा हो नहीं पा रहा है, आम व्यक्ति भी अब ऐसे प्रहसनों को समझने लगा है, वह समझने लगा है कि एक मंच के ऊपर हाथ मिलाकर खड़े हो जाने से विपक्ष में एकता नहीं आ सकती । जब ये हाथ खाली होते हैं तब वे ताली नहीं बजाते बल्कि थपकी मारते हैं । अभी तो ऐसे प्रहसन और होगें और हर बार एकता का बुलबुला फूट जायेगा । इस बार यह बात साफ दिखाई दे रही है कि अरविन्द केजरीवाल जो सारी राजनीतिक पार्टिंयों को भ्रष् पार्टी मानते रहे हैं वे भी एक दूसरे का हाथ मिलाते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हें, या तो वे पूरे राजनीतिज्ञ बन चुके हैं अथवा उन्हें भी लगने लगा कि है कि केन््रद की कुर्सी चाहिए तो कोई कैसा भी हो उसे अपनाना ही पड़ेगा । इस पूरे प्रहसन में कांग्रेस कहां है यह अभी दिखाई नहीं दे रहा है । वैसे कांग्रेस इस प्रहसन में शमिल नहीं होगी तो उसे ज्यादा लाभ मिलगा ऐसा माना जा सकता है । कांग्रेस अब नये आत्मविश्वास के साथ खड़ी है और उसके साथ नीतिश कुमार भी खड़े हैं और तेजस्वी यादव भी खड़े हैं । लोकसभा चुनाव के नतीजे तो अभी साफ दिखाई दे रहे हैं पर सभी को अपने-अपने हिस्से का प्रदर्शन तो करना ही पड़ेगा तो वे करेगें भी ।