मणिपुर हिंसा और महिला के साथ हुई अभद्रता बेहद शर्मनाक रहीं। जिस मुद्दे पर देश में बात और बहस होनी चाहिए थी उसे कही दबा दिया गया । सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को दोषी मानकर अपना पल्ला झाड़ लिया । कांग्रेस की हो हल्ला मचाने वाले टीम के सदस्य सुप्रिया श्रीनेत और पवन खेड़ा ने हर मुद्दे पर सरकार से इस्तीफा मांगने की अपनी पुरानी राग जारी रखी पर कभी बंगाल , राजस्थान, केरला और हैदराबाद की हिंसा पर चर्चा नही की । जांच कमेटी नही बैठाई गई और न इन हिंसाओं के पीछे का असली वजह ढूढा गया । क्या आप सच नहीं जानते जज साहब ? सीजेआई चंद्रचूड़ जी क्या आपको नहीं पता की आरक्षण को लेकर ये मणिपुरी समुदाय एक दूसरे के खून के प्यासे हुए ? क्या आपने आरक्षण के इस लड़ाई के लिए कोर्ट को दोषी नहीं माना ? नही माना तो अब मानिए क्योंकि इसी बेतरतीब आरक्षण और अफीम की खेती को लेकर मणिपुर जला । आपने पश्चिम बंगाल में हुए जातीय और राजनीतिक हिंसा पर कोई संज्ञान नहीं लिया जज साहब क्योंकि आपकी आंखो पर सेक्युलरिज्म का चश्मा लगा होता होगा किंतु याद रखिए भारत हिंदुओं की मूल आत्मा है और यहां कोई ईसाई और कोई मुस्लिम यह दावा करके नही पनप सकते की हिंदुस्तान उनके बाप का है । यह हिंदुस्तान केवल हिंदुत्व की धरोवर है और इसे बचाने के लिए जिस दिन हिंदू सड़को पर उतार दिए जायेंगे उस दिन अफसोस होगा । राजनीतिक पार्टियां इसे ही मुद्दा बनाने की फिराक में है और जिस दिन ऐसा हुआ ये मान कर चलिए गृह युद्ध जैसी स्थिति बन जायेगी और इसके जिम्मेदार ममता बनर्जी, ओवैसी, दिलिप मंडल , सुप्रिया श्रीनेत और संबित पात्रा जैसे लोग होंगे जिनके सारथी ये न्यूज चैनल बनेंगे जो डिबेट के नाम पर गलत और शर्मसार करने वाले तथ्य बोलने की खुली छूट देते है ।मणिपुर में अफीम की खेती भी मुख्य कारण ऐसी जातिगत हिंसा की। मणिपुर में बसी एक विदेशी मूल की जाति कुकी है, जो मात्र डेढ़ सौ वर्ष पहले पहाड़ों में आ कर बसी थी। ये मूलतः मंगोल नश्ल के लोग हैं। जब अंग्रेजों ने चीन में अफीम की खेती को बढ़ावा दिया तो उसके कुछ दशक बाद अंग्रेजों ने ही इन मंगोलों को वर्मा के पहाड़ी इलाके से ला कर मणिपुर में अफीम की खेती में लगाया। आपको आश्चर्य होगा कि तमाम कानूनों को धत्ता बता कर ये अब भी अफीम की खेती करते हैं और कानून इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। इनके व्यवहार में अब भी वही मंगोली क्रूरता है, और व्यवस्था के प्रति प्रतिरोध का भाव है। मतलब नहीं मानेंगे, तो नहीं मानेंगे।
अधिकांश कुकी यहाँ अंग्रेजों द्वारा बसाए गए हैं, पर कुछ उसके पहले ही रहते थे। उन्हें वर्मा से बुला कर मैतेई राजाओं ने बसाया था। क्यों? क्योंकि तब ये सस्ते सैनिक हुआ करते थे। सस्ते मजदूर के चक्कर में अपना नाश कर लेना कोई नई बीमारी नहीं है। आप भी ढूंढते हैं न सस्ते मजदूर? खैर आप मणिपुर के लोकल न्यूज को पढ़ने का प्रयास करेंगे तो पाएंगे कि कुकी अब भी अवैध तरीके से वर्मा से आ कर मणिपुर के सीमावर्ती जिलों में बस रहे हैं। सरकार इस घुसपैठ को रोकने का प्रयास कर रही है, पर पूर्णतः सफल नहीं है।आजादी के बाद जब उत्तर पूर्व में मिशनरियों को खुली छूट मिली तो उन्होंने इनका धर्म परिवर्तन कराया और अब लगभग सारे कुकी ईसाई हैं। और यही कारण है कि इनके मुद्दे पर एशिया-यूरोप सब एक सुर में बोलने लगते हैं। इन लोगों का एक विशेष गुण है। नहीं मानेंगे, तो नहीं मानेंगे। क्या सरकार, क्या सुप्रीम कोर्ट? अपुनिच सरकार है! “पुष्पा राज, झुकेगा नहीं साला” सरकार कहती है, अफीम की खेती अवैध है। ये कहते हैं, “तो क्या हुआ ? हम करेंगे।” कोर्ट ने कहा, “मैतेई भी अनुसूचित जाति के लोग हैं।” ये कहते हैं, “कोर्ट कौन? हम कहते हैं कि वे अनुसूचित नहीं हैं, मतलब नहीं हैं। हमीं कोर्ट हैं। मैती, मैतेई या मैतई… ये मणिपुर के मूल निवासी हैं। सदैव वनवासियों की तरह प्राकृतिक वैष्णव जीवन जीने वाले लोग। पुराने दिनों में सत्ता इनकी थी, इन्हीं में से राजा हुआ करते थे। अब राज्य नहीं है, जमीन भी नहीं है। मणिपुर की जनसंख्या में ये आधे से अधिक हैं, पर भूमि इनके पास दस प्रतिशत के आसपास है। उधर कुकीयों की जनसंख्या 30% है, पर जमीन 90% है। 90% जमीन पर कब्जा रखने वाले कुकीयों की मांग है कि 10% जमीन वाले मैतेई लोगों को जनजाति का दर्जा न दिया जाय। वे लोग विकसित हैं, सम्पन्न हैं। यदि उनको यदि अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया तो हमारा विकास नहीं होगा। हमलोग शोषित हैं, कुपोषित हैं… कितनी अच्छी बात है न? अब मैतेई भाई बहनों की दशा देखिये। जनसंख्या इनकी अधिक है, विधायक इनके अधिक हैं, सरकार इनके समर्थन की है। पर कोर्ट से आदेश मिलने के बाद भी ये अपना हक नहीं ले पा रहे हैं। क्यों? इसका उत्तर समझना बहुत कठिन नहीं है। यह सारी बातें फैक्ट हैं। अब आपको किसका समर्थन करना है और किसका विरोध, यह आपका चयन है। मुझे फैक्ट्स बताने थे, वह मैंने कर दिया।
__ पंकज कुमार मिश्रा मीडिया कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर